‘समास’ (Compounds) का शाब्दिक अर्थ है—संक्षेप।

नीचे लिखे वाक्यों को देखें-
राजा का कुमार सख्त बीमार था।
राजकुमार बीमार था।
उपर्युक्त वाक्यों में हम देख रहे हैं कि ‘राजा का कुमार’ का संक्षिप्त रूप ‘राजकुमार’ हो गया है ।
अर्थात् दो या अधिक शब्दों का अपने विभक्ति-चिह्नों अथवा अन्य प्रत्ययों को छोड़कर आपस में मिल जाना ही ‘समास’ कहलाता है।
तात्पर्य यह कि समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है। जब वे दो या अनेक पद एक हो जाते हैं तब समास होता है। समास होने के पूर्व पदों के रूप को (बिखरे रूप) ‘समास-विग्रह’ और समास होने के बाद बने संक्षिप्त रूप को ‘समस्तपद’ या ‘सामासिक पद’ कहते हैं। ऊपर दिए गए उदाहरणों में राजा का कुमार’—समास-विग्रह और ‘राजकुमार’ को हम ‘समस्तपद’ कहेंगे।
1 .अव्ययीभाव समास’
इस समास का पहला पद प्रधान होता है और समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण (Adverb) का काम करता है। इसी कारण से अव्ययीभाव का समस्तपद सदा लिग, वचन और विभक्तिहीन समास’ होता है। इसके दोनों पदों का स्वतंत्र रूप से पृथक् प्रयोग नहीं होता; क्योंकि यह प्रायः ‘नित्य रहता है। का काम करता है। इसी कारण से अव्ययीभाव का समस्तपद सदा लिग, वचन और विभक्तिहीन समास’ होता है।
चूँकि उपसर्ग भी अव्यय होते हैं इसलिए उपसर्गों से निर्मित समस्तपद अव्यय का ही काम करते हैं- अव्ययीभाव समास अनेक अर्थों में विहित है।
(i) से लेकर/तक : आजन्म = जन्म से लेकर , आकंठ = कंठ तक
(ii) क्रम : अनुज्येष्ठ = ज्येष्ठ के क्रम से
(iii) के अनुकूल/ के अनुसार : यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार, यथासमय =समय के अनुकूल
(iv) वीप्सा : प्रतिदिन = दिन-दिन
(v) के योग्य : अनुरूप = रूप के योग्य
(vi) अभाव : निर्जन = जनों का अभाव , निर्मक्षिक = मक्षिक (मक्खी) का अभाव
(vii) पुनरुक्ति :रातों-रात, हाथों-हाथ, धीरे-धीरे आदि ।
अव्ययीभाव समास की पहचान के लक्षण: अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जा सकती हैं-
(i) यदि समस्तपद के आरंभ में भर, निर, प्रति, यथा, बे, आ, ब, उप, यावत्, अधि, अनु आदि उपसर्ग/अव्यय हों।
जैसे-
यथाशक्ति, प्रत्येक, उपकूल, निर्विवाद अनुरूप, आजीवन आदि ।
(ii ) यदि समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करे। जैसे- उसने भरपेट खाया (क्रियाविशेषण क्रिया)
2. तत्पुरुष समास
वह समास, जिसका उत्तरपद या अंतिम पद प्रधान हो। अर्थात् प्रथम पद गौण हो और उत्तरपद की प्रधानता हो ।
जैसे—राजकुमार सख्त बीमार था । इस वाक्य में समस्तपद ‘राजकुमार’ जिसका विग्रह है—राजा का कुमार। इस विग्रह पद में ‘राजा’ पहला पद और ‘कुमार’ (पुत्र) उत्तर पद है। अब प्रश्न है—कौन बीमार था, राजा या कुमार ? उत्तर मिलता है—कुमार। स्पष्ट है कि उत्तरपद की ही प्रधानता है।
कुछ और उदाहरण देखते हैं-
राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। (उत्तरपद प्रधान)
पॉकेटमार पकड़ा गया। (पॉकेट नहीं उसको मारनेवाला)
रामचरितमानस तुलसीकृत है। (‘कृत’ पद की प्रधानता)
अवयव की दृष्टि से तत्पुरुष समास के दो भेद हैं-
A. व्यधिकरण तत्पुरुष
वह तत्पुरुष, जिसमें प्रयुक्त पदों में से पहला पद कर्ताकारक का नहीं हो। ‘इस तत्पुरुष को केवल तत्पुरुष भी कहा जाता है। इस समास को पहले पद में लगे कारक चिह्नों के नाम पर ही पुकारा जाता है। ‘कर्ता’ और ‘संबोधन’ को छोड़कर बाकी सभी कारकों से संबद्ध तत्पुरुष समास बनाए जाते हैं। इसके निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
1. कर्म या द्वितीया तत्पुरुष : इसमें पद के साथ कर्म कारक के चिह्न (o, को) लगे रहते नाम हैं।
जैसे-
गृहागत = गृह को आगत
पॉकेटमार = पॉकेट को मारनेवाला आदि ।
2. करण या तृतीया तत्पुरुष : जिसके पहले पद के साथ करण कारक की विभक्ति (से/द्वारा) लगी हो।
जैसे-
कष्टसाध्य= कष्ट से साध्य
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा कृत आदि ।
3 सम्प्रदान या चतुर्थी तत्पुरुष : (को /के)
देशार्पण = देश के लिए
विद्यालय = विद्या के लिए
4. अपादान या पंचमी तत्पुरुष: जिसका प्रथम पद अपादान के चिहन से युक्त हो।
जैसे-
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
देशनिकाला = देश से निकाला आदि।
5. संबंध तत्पुरुष या षष्ठी तत्पुरुष : जिसके प्रथम पद के साथ संबंधकारक के चिह्न (का, के, की) लगे हों।
जैसे-
राजकुमार = राजा का कुमार
पराधीन = पर के अधीन आदि ।
6.अधिकरण या सप्तमी तत्पुरुष : जिसके पहले पद के साथ अधिकरण के चिह्न (में, पर) लगे हों।
जैसे-
कलाप्रवीण = कला में प्रवीण
आपबीती = आप पर बीती आदि ।
B. समानाधिकरण तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष के सभी पदों में समान कारक (कत्ता) पाया जाय। इस समास के अन्तर्गत निम्नलिखित समास आते हैं-
3 .कर्मधारय समास (Appositional): समानाधिकरण तत्पुरुष का ही दूसरा नाम ‘कर्मधारय’ है। जिस तत्पुरुष समास के समस्तपद समानाधिकरण हों अर्थात् विशेष-विशेषण भाव को प्राप्त हों, कर्ता कारक के हों और लिंग-वचन में भी समान हों। दूसरे शब्दों में वह समास जिसमें विशेषण तथा विशेष्य अथवा उपमान तथा उपमेय का मेल हो और विग्रह करने पर दोनों खंडों में एक ही कर्त्ताकारक की विभक्ति रहे।
कर्मधारण समास की निम्नलिखित स्थितियाँ होती हैं-
- पहला पद विशेषण दूसरा विशेष्य : महान्, पुरुष = महापुरुष
- पक्व अन्न= पक्वान्न
- दोनों पद विशेषण : श्वेत और रक्त = श्वेतरक्त
- भला और बुरा = भलाबुरा
- पहला पद विशेष्य दूसरा विशेषण : कृष्ण और लोहित कृष्णलोहित
- दोनों पद विशेष्य: श्याम जो सुन्दर = श्यामसुन्दर
- पहला पद उपमान : आम्रवृक्ष
- घन की भाँति श्याम = घनश्याम
(१) पहला पद उपमेय : वज्र के समान कठोर = वज्रकठोर
(8) उपमान के बाद उपमेय : सिंह के समान नर = नरसिंह
(h) रूपक कर्मधारय : मुखरूपी चन्द्र = चन्द्रमुख
नञ् तत्पुरुष समास : जिसका पहला पद निषेधवाचक रहे। इसका समस्तपद ‘अ’ या ‘अन्’ से शुरु होता है।
जैसे-
- न ज्ञान अज्ञान
- न अवसर अनवसर
- न अधिकार अनधिकार आदि।
4 . द्विगु समास (Numeral Compound) : इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा है। इसका पहला पद संख्यावाची और दूसरा पद संज्ञा होता है । इसके भी दो भेद होते हैं-
a) समाहार द्विगु : समाहार का अर्थ है–समुदाय, इकट्ठा होना या समेटना ।
जैसे-
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
चौराहा = चार राहों का समाहार
(b) उत्तरपद प्रधान द्विगु : इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्यावाची। इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता।
जैसे-
पंचप्रमाण= पाँच प्रमाण
नोट : यदि दोनों पद संख्यावाची हों तो कर्मधारय समास हो जाएगा। जैसे-
छत्तीस = छ: और तीस, इकत्तीस = एक और तीस
चौंतीस = चार और तीस , चौबीस = चार और बीस
4. मध्यमपदलोपी समास : इसमें बीच के पदों का लोप हो जाया करता है। पहला और अंतिम पद ही जुड़कर समस्तपद का निर्माण करता है।
जैसे—
छाया प्रद तरु = छायातरु
गोबर से निर्मित गणेश = गोबरगणेश
5. प्रादि तत्पुरुष : इस समास में ‘प्र’ आदि उपसर्गों तथा दूसरे शब्दों का समास होता है। ‘प्र’ आदि के साथ उन्हीं के रूप से दूसरे शब्द भी जुड़े रहते हैं; परन्तु समास करने पर वे लुप्त हो जाते हैं।
जैसे-
प्रकृष्ट आचार्य = प्राचार्य
6. उपपद तत्पुरुष : जिस समास का अंतिम पद ऐसा कृदन्त होता है, जिसका स्वतंत्र रूप से (कृदन्त के रूप में) प्रयोग नहीं होता।
जैसे-
कुंभ को करनेवाला = कुंभकार
जल में जनमनेवाला = जलज ।
इन उदाहरणों में ‘कार’ और ‘ज’ दोनों अप्रचलित कृदन्त हैं।
7. अलुक् तत्पुरुष :जिस तत्पुरुष के पहले पद की विभक्ति (कारक-चिह्न) का लोप न होकर उसी में तिरोहित हो जाती है।
जैसे-
युद्ध में स्थिर रहनेवाला = युधिष्ठिर
इस उदाहरण में—’युद्ध में की जगह पर ‘युधि’ हो गया है यानी ‘में चिह्न मिल गया है।
इसी तरह—चूहे को मारनेवाला = चूहेमार ।
8. मयूरव्यंसकादि तत्पुरुष : इसके समस्तपद का विग्रह करने पर अंतिम पद पहले आ जाता है।
देशान्तर = भिन्न देश
विषयान्तर = अन्य विषय
एकमात्र = केवल एक
5 . बहुव्रीहि समास
जिस समास में कोई पद प्रधान न होकर (दिए गए पदों मे) किसी अन्य पद का प्रधानता होती है। यह अपने पदों से भिन्न किसी विशेष संज्ञा का विशेषण है।
यह समास भी चार प्रकार का होता है-
1. समानाधिकरण बहुव्रीहि :
इसमें जिन पदों का समास होता है, वे साधारणतः कर्ताकारक होते हैं; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति रूपों में भी उक्त हो सकता है।
जैसे-
कलह है प्रिय जिसको वह = कलहप्रिय (कर्म में उक्त)
जीती गई हैं इन्द्रियाँ जिससे वह = जितेन्द्रिय (करण में उक्त)
दिया गया है धन जिसके लिए वह = दत्तधन (सम्प्रदान में उक्त)
पीत है अम्बर जिसका वह = पीताम्ब र(संबंध में उक्त)
चार हैं लड़ियाँ जिसमें वह चौलड़ी(अधिकरण में उक्त)
2. व्यधिकरण बहुव्रीहि : इसमें भी पहला पद कर्ताकारक का और दूसरा पद संबंध या अधिकरण कारक का होता है।
जैसे-
शूल है पाणि में जिसके वह = शूलपाणि
वीणा है पाणि में जिसके वह = वीणापाणि
चन्द्र है शेखर पर जिसके वह = चन्द्रशेखर
3. तुल्ययोग या सह बहुव्रीहि : जिसका पहला पद सह (साथ) हो; लेकिन ‘सह’ के स्थान पर ‘स’ हो।
जैसे-
जो बल के साथ है, वह = सबल
जो परिवार के साथ है, वह = सपरिवार
4. व्यतिहार बहुव्रीहि : जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो।
जैसे-
मुक्के -मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्कामुक्की
लाठी-लाठी से जो लड़ाई हुई= लाठालाठी
बहुव्रीहि समास-संबंधी विशेष बातें:-
यदि बहुव्रीहि समास के समस्तपद में दूसरा पद ‘धर्म’ या ‘धनु’ हो तो वह आकारान्त हो जाता है। जैसे-
आलोक ही है धनु जिसका वह = आलोकधन्वा
» सकारान्त में विकल्प से ‘आ’ और ‘क’ किन्तु ईकारान्त, ऊकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्चित रूप से ‘क’ लग जाता है।
जैसे-
उदार है मन जिसका वह = उदारमनस्
अन्य में है मन जिसका वह = अन्यमनस्क
6 .द्वन्द्व समास
जिस समास में दोनों पद समानतः प्रधान होते हैं। इसमें समुच्चयबोधक अव्यय का लोप छोटा-बड़ा कर दिया जाता है।
द्वन्द्व समास तीन प्रकार के होते हैं.
1. इतरेतर द्वन्द्व : इस कोटि के समास में समुच्चयबोधक अव्यय ‘और’ का लोप हो जाता है ।
जैसे—
सीताराम, गाय-बैल, दाल-भात, नाक-कान आदि ।
2. वैकल्पिक द्वन्द्व : इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय ‘वा’, ‘या’, अथवा’ का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है ।
जैसे-
धर्म या अधर्म = धर्माधर्म
सत्य या असत्य = सत्यासत्य
छोटा या बड़ा
3. समाहार द्वन्द्व : इस कोटि के समास में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित होता है।
जैसे-
दाल, रोटी वगैरह = दाल-रोटी
कपड़ा, लत्ता वगैरहन = कपड़ा-लत्ता
अव्ययीभाव समास’
समस्तपद | विग्रह |
आजीवन | जीवन भर |
यथोचित | जितना उचित हो |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
भरपूर | पूरा भरा हुआ |
आमरण | मरण तक |
बेमिसाल | जिसकी मिसाल न हो |
बेमौके | बिना मौके के |
अनुरूप | रूप के अनुसार |
बेखटके | बिना खटके के |
प्रतिदिन | दिन-दिन/हर दिन |
हरघड़ी | घड़ी-घड़ी |
प्रत्येक | एक-एक |
बाअदब | अदब के साथ |
प्रत्यक्ष | आँखों के सामने |
2. तत्पुरुष समास:
समस्तपद | विग्रह |
जेबकतरा | जेब को कतरनेवाला |
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
सुखप्राप्त | सुख को प्राप्त |
गगनचुंबी | गगन को चूमनेवाला |
ग्रामगत | ग्राम को गत |
विदेशगत | विदेश को गत |
स्वर्गगत | स्वर्ग को गत |
परलोकगमन | परलोक को गमन |
प्रेमाकुल | प्रेम से आकुल |
कष्टसाध्य | कष्ट से साध्य |
रेखांकित | रेखा से अंकित |
प्रेमातुर | प्रेम से आतुर |
मदमस्त | मद से मस्त |
तुलसीकृत | तुलसी से/के द्वारा कृत |
शोकाकुल | शोक से आकुल |
भयग्रस्त | भय से ग्रस्त |
गुणयुक्त | गुणों से युक्त |
हस्तलिखित | हाथ से लिखित |
विरहाकुल | विरह से आकुल |
मनचाहा | मन से चाहा |
बाढ़पीड़ित | बाढ़ से पीड़ित |
स्वरचित | स्व से/के द्वारा रचित |
3 .कर्मधारय समास
समस्तपद | विग्रह |
नीलगाय | नीली है जो गाय |
महात्मा | महान है जो आत्मा |
भलामानस | भला है जो मानस |
महादेव | महान है जो देव |
परनारी | पराई है जो नारी |
पुरुषोत्तम | उत्तम है जो पुरुष |
4 . द्विगु समास
समस्तपद | विग्रह-1 (कर्मधारय समास) | विग्रह-II (द्विगु समास) |
पंचतंत्र | पाँच हैं तंत्र जो | पाँच तंत्रों का समाहार |
अष्टसिद्धि | आठ सिद्धियां हैं जो | आठ सिद्धियों का समाहार |
चतुर्भुज | चार भुजाएँ हैं जो | चार भुजाओं का समाहार |
चवन्नी | चार आने हैं जो | चार आनों का समाहार |
6 .द्वन्द्व समास
समस्तपद | विग्रह |
दाल-चावल | दाल और चावल |
जल-थल | जल और थल |
माता-पिता | माता और पिता |
नदी-नाले | नदी और नाले |
बाप-दादी | बाप और दादा |
छोटा-बड़ा | छोटा और बड़ा |
राधा-कृष्ण | राधा और कृष्ण |
पूर्व-पश्चिम | पूर्व और पश्चिम |
आगे-पीछे | आगे और पीछे |
गुण-दोष | गुण और दोष |
स्वर्ग-नर्क | स्वर्ग और नर्क |
अन्न-जल | अन्न और जल |
खट्टा-मीठा | खट्टा और मीठा |
रात-दिन | रात और दिन |
हार-जीत | हार और जीत |
5 . बहुव्रीहि समास
समस्तपद | विग्रह | प्रधान पद |
अंशुमाली | अंशु (किरणें) हैं मालाएँ जिसकी | सूर्य |
चारपाई | चार हैं पाए जिसके | पलंग |
तिरंगा | तीन रंग हैं जिसके | भारतीय राष्ट्रध्वज |
विषधर | विष को धारण किया है जिसने | शिव |
षडानन | षट् (छह) हैं आनन (मुख) जिसके | कार्तिकेय |
चक्रधर | चक्र धारण किया है जिसने | विष्णु |
गजानन | गज के समान आनन है जिसका | गणेश |
घनश्याम | घन के समान श्याम (काले) हैं जो | कृष्ण |
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