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शब्द-सूची तत्सम तद्भव की परिभाषा ,उदाहरण Tatsam and Tatbhav Shabd Rules, Examples

शब्द-सूची तत्सम तद्भव की  परिभाषा क्या है ?

शब्द-सूची तत्सम तद्भव की परिभाषा
शब्द-सूची तत्सम तद्भव की परिभाषा

“वर्णों के सार्थक मेल को ‘शब्द’ कहा जाता है।”

जैसे-‘मन’ एक शब्द है, जिसमें म्, अ, न् और अ-ये चार ध्वनियाँ हैं। इस शब्द के दो अर्थ हुए-चित्त और एक मात्रक। नीचे के उदाहरणों को देखें- आप अपने मन की बात बताइए। (चित्त के अर्थ में)

सरकार ने प्रत्येक परिवार को एक मन गेहूँ दिया। (मात्रक के अर्थ में)

हम पहले देख चुके हैं कि शब्द अनेकार्थी होते हैं । परन्तु, जब शब्द वाक्य में तब वे अर्थवाची बनकर यानी किसी खास अर्थ की बात कर ‘पद’ का रूप ग्रहण कर लेते प्रयुक्त होते हैं। उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त ‘मन’ शब्द न होकर ‘पद’ बना गया है। यों तो हिन्दी भाषा का शब्द-भंडार काफी विस्तृत है, जिसे वर्गीकृत करना कठिन है; फिर कुछ आधारों पर इन शब्दों को अलग-अलग रूपों में रखा जा रहा है-

1. विकास या उद्गम की दृष्टि से शब्द-भेद इस दृष्टि से शब्दों को चार वर्गों में रखा गया है-
(क) तत्सम शब्द : वैसे शब्द, जो संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में समान रूप से प्रचलित हैं। अंतर केवल इतना है कि संस्कृत भाषा में वे अपने विभक्ति-चिह्नों या प्रत्ययों से युक्त होते हैं और हिन्दी में वे उनसे रहित ।

जैसे-

संस्कृत में             कर्पूरः           पर्यङ्कः              फलम्                  ज्येष्ठः
हिन्दी में               कर्पूर            पर्यंक                                           ज्येष्ठ

(ख) तद्भव शब्द : (उससे भव या उत्पन्न) वैसे शब्द, जो तत्सम से विकास करके बने हैं और कई रूपों में वे उनके (तत्सम के) समान नजर आते हैं।

जैसे-

कर्पूर > कपूर
पर्यङ्क > पलंग
अग्नि > आग आदि ।

नोट: नीचे तत्सम तद्भव शब्दों की सूची दी जा रही है। इन्हें देखें और समझने की कोशिश करें कि इनमें समानता-असमानता क्या है?

तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के नियम :-

(1) तत्सम शब्दों के पीछे ‘ क्ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों के पीछे ‘ ख ‘ या ‘ छ ‘ शब्द का प्रयोग होता है।

(2) तत्सम शब्दों में ‘ श्र ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(3) तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(4) तत्सम शब्दों में ‘ ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है।

(5) तत्सम शब्दों में ‘ ऋ ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(6) तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(7) तत्सम शब्दों में ‘ व ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है।

तत्सम तद्भव शब्द

तत्सम शब्दतद्भव शब्द
अग्निआग
कर्णकान
रात्रिरात
अन्धअँधा
अश्रुआँसू
निद्रानींद
अर्द्धआधा
धैर्यधीरज
जिह्वाजीभ
तिक्ततीता
आश्रयआसरा
ज्येष्ठजेठ
सुभागसुहाग
शुष्कसुखा
दधिदही
दुग्धदूध
पदपैर
श्रावणसावन
चैत्रचैत
अज्ञानअजान
तैलतेल
घृतघी
अंगरक्षकअंगरखा
बटबड़
क्षारखार
पीतपीला
भाद्रभादो
आश्विनआसिन
अक्षिआँख
शय्यासेज
उलूकउल्लू
अद्यआज
परखःपरसों
धान्यधान
ओष्ठओठ
दन्तदांत
उष्ट्रऊँट
इक्षुईंख, ऊंख
पौषपूस
कुपुत्रकपूत
पौत्रपोता
चन्द्रचाँद
सूर्यसूरज
चंचुचोंच
घटिकाघडी
कपाटकिवाड़
आश्रयआसरा
श्वसुरससुर
अशीतिअस्सी
कार्तिककातिक
प्रहरीपहरुआ
कुष्ठकोढ़
गर्भिणीगाभिनी
स्तनथन
स्वर्णकारसुनार
दण्डडंडा
झटितिझट
ज्येष्ठजेठ
गदर्भगधा, गदहा
हस्तहाथ
कूपकुआँ
फाल्गुनफागुन
वानरबन्दर
स्वजनसज्जन
त्वरिततुरंत
मित्रमीत
मृत्युमौत
अग्रहायणअगहन
पौत्रीपोती
नव्यनया
पुराणपुराना
चित्रकारचितेरा
काणकान
पश्चातापपछतावा
शिरसिर
श्रृंगारसिंगार
सुभागसुहाग
पत्रपत्ता
बालुकाबालू
राक्षसराछस
व्याघ्रबाघ
भल्लूकभालू
शृगालसियार
गंभीरगहरा
सूचीसुई
चर्मकारचमार
लौहकारलोहार
कुम्भकारकुम्हार
पिप्पलपीपल
शुष्कसुखा
कर्पूरकपूर
आम्रआम
स्वर्णसोना
कंदुकगेंद
कुब्जकुबड़ा
श्वाससांस
लौहलोहा
श्रेष्ठीसेठ
प्रस्तरपत्थर
घोटकघोडा
बधिरबहिर
पृष्ठपीठ
द्विगुणादुगुना
नस्यनस
द्वादशबारह
गर्जनगरज
शतसौ
लक्षलाख
कोटिकरोड़
श्यालकसाला
एकादशग्यारह
काष्ठकाठ
गर्जनगरज
सप्तशतीससई
ग्रंथिगांठ
हास्यहँसी
ताम्रताम्बा
चतुष्पादचौपाया
कार्यकाज
युवाजवान
खट्वाटखाट
धर्मधरम
कदम्बकदम
इष्टिकाईंट
चूर्णचूरन

(ग) देशज शब्दं :

वैसे शब्द, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं या बोलियों से हिन्दी में आ गए हैं। इनका संस्कृत से कोई संबंध नहीं है।

जैसे-         खुरपा               गाड़ी                   छाती
बाप           बेटा                 पिल्ला                 पगड़ी
तेंदुआ       कटोरा              खिचड़ी

(घ) विदेशज शब्द :

वैसे शब्द, जो न तो संस्कृत के न ही हिन्दी या अन्य बोलियों के वे अन्य विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आ गए हैं।

जैसे-

अंग्रेजी शब्द

स्कूल,  डॉक्टर,  स्टेशन ,  मास्टर,  ऑफिस प्रेस , कलक्टर,  रजिस्ट्री , नोटिस ,फीस,  टीन, स्लेट,  डिग्री ,पेन , स्टील,  रेल , फंड , कमिटी,  कोट,  ग्ला,  इंच, फुट, मीटर,  कंपनी, बॉक्स , बटन ,कमीशन,

फारसी शब्द

अफसोस, अदा ,आराम ,आदमी ,उम्मीद, कबूतर ,कमर ,खूब ,जवान ,दरबार,जोर , दुकान, मोजा, गर्म, कद्दू, दोस्त, गुल,

अरबीशब्द

अदना ,अजनबी ,इनाम ,उम्दा, उम्र, कसर, कसम, कीमत, खास,  खत,  खबर, ख्याल, गरीब,  गुस्सा, जाहिल, जिस्म, जनाब, जालिम तमाशा, तारीख, नतीजा,  नशा,

तुर्की शब्द

काबू ,कालीन, कैंची, चेचक, कुली,  कुर्की , लाश ,जाजिम ,तोप, तमगा, लफंगा, सौगात, तलाश ,बहादुर, मुगल, दाग, एहसान, औसत ,चमचा, चकमक, चोंगा,

2. व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द भेद व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द तीन प्रकार के होते हैं-

(क) रूढ़ शब्द :वैसे शब्द, जो परम्परा से किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते आए हैं और
जिनके खंडित रूप निरर्थक होते हैं।

जैसे-

कमल, धन, पुस्तक, जग, मत, नीला आदि ।
(ख) यौगिक शब्द : किसी रूढ़ शब्द में उपसर्ग, प्रत्यय या अन्य शब्द जोड़ देने पर बने शब्द ‘यौगिक’ कहलाते हैं। चूँकि ऐसे शब्द दो रूढ़ों के योग से बने होते हैं इसलिए इनके खंड सार्थक हुआ करते हैं।

जैसे-

रसोई + घर = रसोईघर
पानी + घाट = पनघट
पाठ+ शाला = पाठशाला + मान् =
दुर् + जन = दुर्जन
निर् + जन = निर्जन

(ग) योगरूढ़ शब्द:

वैसे शब्द, जो यौगिक के समान बने है; परन्तु वे सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेषार्थ ग्रहण कर लेते हैं।

जैसे-

पंक + ज = पंकज (कमल के लिए प्रयुक्त)
पंक (कीचड़) में जन्म लेनेवाले कीड़े, जलीय पौधे, मच्छर, घोंघा, केकड़ा आदि भी हैं; परन्तु ‘पंकज’ केवल ‘कमल’ के लिए ही प्रयुक्त हुआ करता है। इसी तरह-लम्बोदर, पीताम्बर आदि शब्द भी योगरूढ़ कहलाते हैं।

3. रूपान्तर की दृष्टि से शब्द-भेद

नीचे लिखे वाक्यों में प्रयुक्त पदों को देखें-
लड़का फल खाता है।
लड़के फल खाते हैं।
लड़कों ने फल खाए। (संज्ञा एवं क्रियापदों के रूप में परिवर्तन)
लड़की फल खाती है।

हम अच्छे हैं।
वे धीरे-धीरे खाते हैं।
मैं धीरे-धीरे खाता हूँ।। (सर्वनाम एवं विशेषण पदों में परिवर्तन)_

वह धीरे-धीरे खाता है। क्रियाविशेषण पद ज्यों का-त्यों (कोई परिवर्तन नहीं)
शीला धीरे-धीरे खाती है।
लड़के धीरे-धीरे खाते हैं।

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि कुछ पदों के रूप परिवर्तित होते रहते हैं तो कुछ के अपरिवर्तित।

लिंग, वचन, कारक आदि के अनुसार परिवर्तित होनेवाले शब्द विकारी और सभी परिस्थितियों में अपने रूप को एक समान रखनेवाले शब्द अविकारी या अव्यय कहलाते हैं।

इस तरह रूपान्तर की दृष्टि से दो प्रकार के शब्द हुए-
(a) विकारी और (b) अविकारी।

विकारी के अन्तर्गत संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया तथा अविकारी के अन्तर्गत क्रिया विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आते हैं।

उपर्युक्त शब्दों को ही वाक्य प्रयोग की दृष्टि से आठ प्रकार का माना जाता है।

4 .अर्थ की दृष्टि से/शब्दों में निहित शक्ति की दृष्टि से  शब्द-भेद-

अर्थ के विचार से शब्दों के तीन प्रकार माने जाते हैं—अभिधा, लक्षणा और व्यंजना ।

शब्द की ये शक्तियाँ तभी प्रकट होती हैं, जब उन्हें वाक्यों में स्थान मिलता है। किसी शब्द का एक ही और साधारण अर्थ उसकी अभिधा शक्ति से प्रकट होता है।

परन्तु, जहाँ किसी वाक्य में ठीक संगति बिठाने के लिए शब्द, साधारण अर्थ को छोड़कर लक्ष्यार्थ लिया जाता है (कोई और अर्थ लिया जाता है), वहाँ उसकी लक्षणा शक्ति काम करती है। प्रायः मुहावरों और विशिष्ट क्रिया प्रयोगों से शब्दों के जो नये अर्थ निकलते हैं, वे इसी शक्ति के द्वारा । जहाँ व्यंग्य आदि के रूप में कुछ चमत्कारपूर्ण अर्थ निकलता है, वहाँ शब्दों की व्यंजना शक्ति काम करती है।

“शब्दों या वाक्यों का यही व्यंग्यार्थ सबसे अधिक चमत्कारपूर्ण और प्रभावशाली होता है।”

नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
वह बच्चा दूध पीता है। (अभिधेयार्थ प्रयोग)
वह दूध पीता बच्चा है। (नासमझ/मासूम बच्चा–लक्ष्यार्थ प्रयोग)
तुम भी क्या दूध के धोये लगते हो। (व्यंग्यार्थ प्रयोग)

लेख के बारे में-

इस आर्टिकल में हमने “शब्द-सूची तत्सम तद्भव की  परिभाषा क्या है ?” के बारे में पढे। अगर इस Notes रिसर्च के बाद जानकारी उपलब्ध कराता है, इस बीच पोस्ट पब्लिश करने में अगर कोई पॉइंट छुट गया हो, स्पेल्लिंग मिस्टेक हो, या फिर आप-आप कोई अन्य प्रश्न का उत्तर ढूढ़ रहें है तो उसे कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएँ अथवा हमें notesciilgrammars@gmail.com पर मेल करें।

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dilendra kumar
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My name is dilendra kumar is the founder of ciilgrammars.org.I am a teacher by profession.Having more than 3+ years of experience in SEO, Blogging, Affiliate Marketing. A commerce graduate, he is passionate about languages and sports. For ciilgrammars, Vikas writes about Hindi grammar and other languages.
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