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रस की परिभाषा Ras in Hindi

रस की परिभाषा Ras in Hindi

रस की परिभाषा Ras in Hindi
रस की परिभाषा Ras in Hindi

”रस्यते आस्वाद्यते इति रसः ।

अर्थात् जिसका आस्वादन किया जाय, सराह-सराह मिलती है, ठीक उसी तरह मधुर काव्य का रसास्वादन करने से हृदय को आनंद मिलता कर चखा जाय, वही ‘रस’ है। जिस तरह से लजीज भोजन से जीभ और मन को तृप्ति है। यह आनंद अलौकिक और अकथनीय होता ‘रस’ है। साहित्य में रस का बड़ा ही महत्त्व माना गया है। साहित्य दर्पण के रचयिता ने कहा है |

-“रसात्मक वाक्यं काव्यम्’ अर्थात् रस ही काव्य की आत्मा है।

रस के निम्नलिखित अवयव माने जाते हैं-

1.स्थायीभाव :

काव्य के द्वारा जिस रस या आनंद का अनुभव होता है, उसके भिन्न- भिन्न स्वरूप होते हैं। जिस समय आप कोई देशभक्ति या वीरता-प्रधान फिल्म देखते हैं अथवा उसके डायलॉग सुनते हैं, उस समय आपके मन में एक विलक्षण उत्साह का होता है।

जब आप किसी मजबूर और बेबस नायिका को प्रताड़ित होते हुए या विलाप करते हुए देखते या पढ़ते हैं तब आपके मन में करुणा का जन्म होता है। ऐसे ही भाव को ‘स्थायीभाव’ कहते हैं, क्योंकि यह भाव चित्त की अन्यान्य क्षणिक भावनाओं के बीच स्थायी रूप से वर्तमान रहता है।

2. विभाव :

स्थायी भाव का जो कारण होता है, उसे ही ‘विभाव’ कहा जाता है। विभाव के दो अवांतर भेद होते हैं—आलंबन और उद्दीपन । जैसे—साँप को देखने मात्र से आपके मन में भय का संचार होता है। यहाँ आपके भय का आलंबन साँप है। अब कल्पना कीजिए कि वह स्थान सुनसान है और साँप फन फैलाकार आपके सामने है। यह दृश्य आपको और ज्यादा उत्तेजित कर देता है—यही उद्दीपन है।

3. अनुभाव :

उपर्युक्त उदाहरण में भय का अनुभव आपको किस प्रकार होता है ? आपकी देह में कँपकँपी होने लगती है, धड़कनें बढ़ जाती हैं, साँस की गति रुक-सी जाती है और आँखों के सामने उस दृश्य की भयंकरता नाचने लगती है। इस चेष्टा को ही ‘अनुभाव’ कहते हैं।

4. संचारी भाव व व्यभिचारी भाव :

मान लिया जाय कि डर के मारे आपकी आँखें झिप जाती हैं और थोड़ी देर के लिए आप चेतनाशून्य हो जाते हैं। यह दशा आत्म-विस्मृति की होती है। यह अधिक देर तक रहती नहीं, एकाएक बिजली की तरह आकर फिर विलीन हो जाती है। यह क्षणिक अवस्था (आत्म-विस्मृति की) केवल भय में ही नहीं शोक, प्रेम, घृणा आदि में भी आती है। ऐसी ही वृत्ति को ‘संचारीभाव’ अथवा ‘व्यभिचारीभाव’ कहते हैं।

अर्थात् विभाव, अनुभाव और संचारीभाव इन तीनों के संयोग से रस का परिपाक होता है। विभाव से भाव की उत्पत्ति होती है, अनुभाव से उसकी अभिव्यक्ति होती है और संचारीभाव से उसकी पुष्टि होती है। जब इन तीनों के द्वारा स्थायीभाव में पूर्णता आ जाती है, तब वह ‘रस’ कहलाता है।”

समस्या और समाधन : शृंगार, हास्य, वीर आदि रसों से तो आनंदानुभूति होती है,परन्तु करुण, भयानक, वीभत्स आदि से तो आनंद नहीं मिलता। फिर सभी रसों को आनंददायक कैसे माना जाय?

करुणादि रसों में जो मनोविकार होते हैं, वे बाह्यतः शोकसूचक होते हुए भीयथार्थतः हृदय को आनंद देनेवाले हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो लोग दुखान्त नाटकशेव्या विलाप, सीता वनवास) क्यों देखना चाहते? इन नाटकों को देखकर या सुनकर, सरोज स्मृति (निराला कृत), निशा-निमंत्रण (बच्चन कृत), यशोधरा (मैथिलीशरण गुप्त कृत) जैसे—काव्यों को पढ़ या सुनकर लोगों की आँखों में आँसू भर आते हैं, कुछ तोसुबकने भी लगते हैं।

इसी तरह किसी कारुणिक फिल्म (जैसे—माँ-बेटी, दोस्ती, खानदान, बागवान आदि) को आँसू बहाते हुए भी लोग बार-बार देखना पसंद करते हैं। असल में काव्य-जनित जो शोक और भय के भाव होते हैं, वे लौकिक नहीं होते। हमें कल्पना के द्वारा उनकी अनुभूति होती है। नाटक का करुण दृश्य देखकर जो अश्रुपात होता है, वह दुःख का नहीं, रसास्वादन का सूचक है।

रस की परिभाषा और प्रकार  Ras in Hindi

साहित्य में 9 प्रकार के रस माने गए हैं। नीचे तालिका में भिन्न-भिन्न रसों और उनके अंग-प्रत्यंग दिखलाए गए हैं-

रसस्थायी भाव आलम्बन उद्दीपन अनुभाव संचारी भाव 
शृंगाररति(प्रेम) नायक-नायिका  प्रेमी, प्रेम-पत्र) सुन्दरप्राकृतिक दृश्य संगीत, सुगंध, एकांत 
-स्थल, चाँदनी, पुष्प, आदि
अवलोकन,  स्पर्श  आदि स्मृति, लज्जा, मोह, उत्कंठा, हर्ष, आवेग, रोमांच , आदि । 
हास्यहास विचित्र आकृति, वाला मानव या वस्तुबेतुकी बातें, अनर्गल हँसी, मुस्कराहट, चेष्टाएँ असंबद्ध  क्रियाएँहँसी, मुस्कराहट, होठों का विकसित होना चंचलता, औत्सुक्य, आलस्य आदि।
करुण शोकइष्ट की मृत्यु या शोचनीय स्थितिमृतक की स्मारक  व वस्तुएँ, अंत्येष्टि आदिरोना-बिलखना, भाग्य को कोसना,  , विलाप करनाचिन्ता, विषाद, जड़ता, मूर्छा,उन्माद आदि।
रौद्र क्रोध अपराधी शत्रुअपराध अत्याचारआँखें लाल होना,  गर्जना, भौंह तनना, दाँत से होठ काटनाउग्रता, मद,  अनर्थ
वीर उत्साह रणक्षेत्र, सैन्य कोलाहाल,रणभेरीयुद्धवीर, धर्मवीर  कर्मवीर, दानवीरअंगों का फड़कनागर्व, हर्ष, उत्कंठा आदि
भयानकभय शून्य स्थान, जंगल,  अंधकार आदिहिंस्र, पशु, डाकू,  आतंकवादी, हत्यारा, साँप इत्यादिथरथराना, सिहरना,  चेहरा पीला पड़ना, छाती का जोर-जोर  से धड़कनात्रास, आवेग,  न्ता, मूर्छा,  अपस्मार, मृत्यु  आदि
वीभत्सजुगुस्पा (घृणा )का भाव सड़ना,  गलना कीड़ा पड़नाखून, पीव, मांस,  चर्बी, दुर्गंध, उबकाई आदि ।नाक मुँह-आँख आदि  बन्द करना, मुँह  फेरना, थूकना आदिव्याधि, अपस्मार,  आवेग, मरण आदि ।
अद्भुत विस्मय , आश्चर्य आश्चर्यजनक समाचार चमत्कार सुनना  या देखनाविचित्र वस्तु या घटनाआँखें फाड़कर देखना, स्तंभित रह जाना , गद्गद हो जानाभ्रांति, वितर्क, मोह इत्यादि का भाव
शांतनिर्वेद , शांति तीर्थाटन, तपोवन, भजन, कीर्तन,  अध्यात्म प्रवचनसंसार की असारता,  शरीरकीक्षणभंगुरता  ईश्वर-चिन्तनपुलकित होनाधैर्य, मति, ज्ञान,  संतोष आदि का भाव

विभिन्न रसों के उदाहरण

नौ रसों के नाम के नाम क्या है ?

1. शृंगार रस (संयोग)

थके नयन रघुपति छवि देखे। पलकन्हि हू परिहरी निमेखे।।
अधिक सनेह देह भइ भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी ।।(बालकंड)

वियोग :

हरिजन जानि प्रीति अति बाढ़ी। सजल नयन पुलकाबलि ठाढ़ी ।।
बचन न आव नयन भरि बारी । अहह नाथ हौं निपट बिसारी।। (सुन्दरकांड)

क्या पूजा, क्या अर्चन रे !

उस असीम का सुन्दर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे !
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे !
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन जलकण रे
(महादेवी वर्मा)

नाथ, तुम जाओ, किन्तु लौट आओगे, आओगे, आओगे।
नाथ, तुम (यशोधरा)

पपीहरा रे,
पी की वाणी ना बोल ।
बोली तेरी, जहर-भरी है
स्मृति झकझोर
पपीहरा रे
मृत्यु (विरह-गीत)

2. हास्य रस

सिव समाज सब देखन लागे । बिडरि चले बाहन सब भागे ।।
नींद टूट गई दोपहरी में, सुन तेरी मधुर पुकार गधे !

3.करुण रस

राम राम कहि राम कहि, राम राम कहि राम ।
तनु परिहरि रघुवर-बिरह, राउ गएउ सुरधाम ।।(अयोध्याकांड)

4.रौद्र रस

रे नृप बालक ! कालबस बोलत, तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारि धनु, बिदित सकल संसार ।।(बालकांड)

5. वीर रस

जौं राऊर अनुसासन पाऊँ। कंदुक इव ब्रह्मांड उठाऊँ।।
काँचे घट जिभि डारऊँ फोरी । सकउँ मेरु मूलक इव तोरी ।।(बालकांड)

6. भयानक रस

गोमायु गीध कराल खर रव स्वान रोवहिं अति घने ।
जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने ।।(लंकाकांड)

7. वीभत्स रस

मारहिं काटहिं धरहिं पछारहिं। सीस तोरि सीसन्हसन मारहिं।
उदर बिदारहिं भुजा उपारहिं । गहि पद अवनि पटकि भट डारहिं। (लंकाकांड)

लोहू जमने से लोहित, सावन की नीलम घासें ।
सरदी-गरमी से सड़कर, बजबजा रही थी लाशें ।।
आँखें निकाल उड़ जाते, क्षणभर उड़कर आ जाते।
शव-जीभ खींचकर कौवै, चुभला-चुभलाकर खाते ।।

गिरि पर डगरा-डगरा कर, खोपड़ियाँ फोर रहे थे।
मलमूत्र-रुधिर चीनी के, शरबत सम घोर रहे थे।
भोजन में श्वान लगे थे, मुरदे थे भू पर लेटे ।
खा मांस, चाट लेते थे, चटनी सम बहते नेटे ।।
लाशों के फाड़ उदर को, खाते-खाते लड़ जाते ।
पोटी पर थूथन देकर, चर-चर कर नसें चबाते ।।
(हल्दी घाटी-14 वाँण सगी)

8. अद्भुत रस

जोजन भरि तेहि बदन पसारा । काँप तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ।।
सोरह जोजन मुख तेहि ठयऊ । तुरत पवन सुत बत्तिस भयऊ ।।
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा । तासु दुगुन कपि रूप दिखावा ।।(सुन्दरकांड )
दौड़ाता अपना घोड़ा अरि, जो आगे बढ़ जाता था।
उछल मौत से पहले उसके, सिर पर वह चढ़ जाता था ।।
लड़ते-लड़ते रख देता था, टाप कूदकर गैरों पर।
हो जाता था खड़ा कभी, अपने चंचल दो पैरों पर ।।(हल्दीघाटी)

9. शांत रस

एहि कलिकाल न साधन दूजा । जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा ।।
रामहिं सुमरिय गाइय रामहिं । संतत सुनिय राम गुण ग्रामहि ।।(उत्तरकांड)

स्मरणीय तथ्य-1

शृंगार-  प्रेम बरसानेवाला,
संयोग-वियोग दो पक्षोंवाला,
हास्य-   हँसाए जीभर।
करुण -शोक है देनेवाला,
रुलाने और बिलखानेवाला,
रौद्र – क्रोध से थर-थर ।
वीर-  उत्साहित करनेवाला,
नस-नस को फड़कानेवाला,
भयानक-   बोले-‘डर! डर !!’
बीभत्स- है जननेवाला,
सड़ा-गला दर्शानेवाला,
अद्भुत- जाता चकितकर ।
शान्त-    है शान्ति देनेवाला,
भक्ति-ज्ञान का चिंतनवाला,
नव रस देखो, गिनकर ।
सूर था कौतुक दिखलानेवाला,
वात्सल्य-  को दसवाँ माननेवाला,
बताया दस भी गिनकर ।

लेख के बारे में-

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dilendra kumar
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My name is dilendra kumar is the founder of ciilgrammars.org.I am a teacher by profession.Having more than 3+ years of experience in SEO, Blogging, Affiliate Marketing. A commerce graduate, he is passionate about languages and sports. For ciilgrammars, Vikas writes about Hindi grammar and other languages.
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