
तिङन्त-प्रकरण अर्थ |Tingant MeaningSanskrit
धातु का अर्थ –
क्रियावाचक प्रकृति को ‘धातु’ कहते हैं। जैसे-भू, स्था, गम्, हस् इत्यादि ।
धातु में कितने लकार होते हैं ?
‘धातु’ के दस लकार होते हैं –
1. लट् लकार (Present tense)
2. लोट् लकार (Imperative mood)
3. लङ् लकार (Past ten1se)
4. विधिलिङ् (Potential mood)
5. लुट् लकार (First future or periphrastic)
6. लृट् लकार (IInd Future tense)
7. लुङ् लकार (Conditional mood)
8. आशीर्लिङ् (Benedictive mood)
9. लिट् लकार (Past Perfect tense)
10. लुङ् लकार (Aorist, IIIrd Preterite, Perfect tense)
विभक्तियों के तीन पुरुष होते हैं –
1. प्रथम पुरुष (Third Person)
2. मध्यम पुरुष (Second Person)
3. उत्तम पुरुष (First Person)
अस्मद् शब्द से उत्तम पुरुष, युष्मद् से मध्यम पुरुष तथा अन्य सभी शब्द प्रथम पुरुष में आते हैं।
प्रत्येक पुरुष के तीन वचन होते हैं-
1. एकवचन (Singular Number)
2. द्विवचन (Dual Number) और
3. बहुवचन (Plural Number)
सारी विभक्तियाँ दो भागों में बँटी हैं-
(i) परस्मैपद और (ii) आत्मनेपद ।
प्रत्येक लकार में 18 रूप होते हैं- परस्मैपद में 9 और आत्मनेपद में 9। अतः परस्मैपद में 90 और आत्मनेपद में भी 90 सभी मिलाकर 180 विभक्तियाँ हैं।
विभक्तियों की आकृति
लट् (वर्तमान काल, Present Tense) परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ति | तस् (तः) | अन्ति |
मध्यम पुरुष | सि | थस् (थः) | थ |
उत्तम पुरुष | मि | वस् (वः) | मस् (मः) |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ते | आते | अन्ते |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
लोट् (अनुज्ञा, Imperative mood)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | तु | ताम् | अन्तु |
मध्यम पुरुष | हि | तम् | त |
उत्तम पुरुष | आनि | आव | आम |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ताम् | आताम् | अन्ताम् |
मध्यम पुरुष | स्व | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ऐ | आवहै | आमहै |
लङ् (भूतकाल, Past Tense)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | त् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | त | ताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास् | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | इ | वहि | महि |
विधिलिङ (चाहिए के अर्थ में, Potential mood)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | यात् | याताम् | युस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यातम् | यात |
उत्तम पुरुष | याम् | याव | याम |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ईत | ईयाताम् | ईरन् |
मध्यम पुरुष | ईथास् | ईयाथाम् | ईध्वम् |
उत्तम पुरुष | ईय | ईवहि | ईमहि |
लुट् (भविष्यत्, Future Tense)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | स्यति | स्यतस् (स्यतः) | स्यन्ति |
मध्यम पुरुष | स्यसि | स्यथस् (स्यथः) | स्यथ |
उत्तम पुरुष | स्यामि | स्यावः | स्यामः |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | स्येते | स्येते | स्यन्ते |
मध्यम पुरुष | स्यसे | स्येथे | स्यध्वे |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहे | स्यामहे |
लुङ् (हेतुहेतुमद्भूत, Conditional mood)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | स्यत् | स्यताम् | स्यन् |
मध्यम पुरुष | स्यस् | स्यतम् | स्यत |
उत्तम पुरुष | स्यम | स्याव | स्याम |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | स्यत | स्येताम् | स्यन्त |
मध्यम पुरुष | स्यथास् | स्येथाम् | स्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहि | स्यामहि |
लृट् (First Future or Periphrastic)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस् |
मध्यम पुरुष | तासि | तास्थस् | तास्थ |
उत्तम पुरुष | तास्मि | तास्वस् | तास्मस् |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस |
मध्यम पुरुष | तासे | तासाथे | ताध्वे |
उत्तम पुरुष | ताहे | तास्वहे | तास्महे |
आशीर्लिङ् (आशीर्वाद देना, Benedictive mood)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | यात् | यास्ताम् | यासुस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यास्तम् | यास्त |
उत्तम पुरुष | यासम् | यास्व | यास्म |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | सीष्ट | सीयास्ताम् | सीरन् |
मध्यम पुरुष | सीष्टास् | सीयस्थाम् | सीध्वम् |
उत्तम पुरुष | सीय | सीवहि | सीमहि |
लिट् (Past Perfect Tense)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | अ | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थ | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | अ | व | म |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | ए | आते | इरे |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
लुडू (Aorist/ IIIrd Preterite)
परस्मैपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | द् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
आत्मनेपद
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | त | आताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास् | आथम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ए | वहि | महि |
धातु-विभाग
संस्कृत के सभी धातु 10 भागों में विभक्त हैं। प्रत्येक भाग का नाम Conjugation (गण) है
1. भ्वादिगण
2. अदादिगण
3. जुहोत्यादि/ह्वादिगण
4. दिवादिगण
5. स्वादिगण
6. तुदादिगण
7. रुधादिगण
8. तनादिगण
9. क्रयादिगण और
10. चुरादिगण
कुछ विशेष ध्यातव्य बातें
विभक्ति का अकार और एकार परे रहने से पूर्ववर्ती अकार का लोप हो जाया करता है।
जैसे-
भव + अन्ति > भवन्ति
सेव + ए > सेवे
> विभक्ति के ‘म’ और ‘व’ परे रहने पर पूर्ववर्ती अकार के स्थान में आकार हो जाता है। जैसे-
भव + वस् > भवावः
भव + मस् > भवामः
> अकार के परे स्थित आते, आथे, आताम्, आथम् इन कई एक विभक्तियों के आकार के स्थान में इकार हो जाता है। जैसे-
सेव + अते > सेवेते
सेव + आथे > सेवेथे
सेव + आतम् > सेवेताम्
सेव + आथाम् > सेवेथाम्
> अकार के परे स्थित विधिलिङ् के ‘जुस्’ के स्थान में इयुस् और यम् के स्थान में इयम् होते हैं। जैसे—
भव + यम् > भवेयम्
भव + यात् > भवेत्
भव + याताम् > भवेताम्
> अकार के और उ, नु इन दोनों आगमों के परे स्थित ‘हि’ विभक्ति का लोप हो जाता है। जैसे-
भव + हि > भव
कुरु+ हि > कुरु
शृणु + हि > शृणु
> परन्तु, ‘नु’ व्यंजन वर्गों के साथ संयुक्त रहने पर ‘हि’ का लोप नहीं होता। जैसे-
आप्नु + हि > आप्नुहि ।
> वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण अथवा श्, ष, स्, ह इन वर्गों के परे स्थित ‘हि’ के स्थान में ‘धि’ हो जाता है। जैसे-
विद् + हि >विद्धि
रुंध् + हि > रुन्धि
> अकार भिन्न वर्ण के परे स्थित अन्त, अन्ताम्, अन्ते इन कई एक विभक्तिों के नकार का लोप हो जाता है। जैसे-
आस् + अन्त > आसत
आस् + अन्ताम् > आसताम्
आम् + अन्ते > आसते
> अन्ति एवं अन्तु विभक्तियों के नकार का भी लोप हो जाता है। जैसे—
जुहु + अन्ति > जुह्वति जुहु + अन्तु > जुह्वतु
शास् + अन्ति > शासति
जागृ + अन्तु > जाग्रतु
अभ्यस्त धातु (जिसमें धातु द्वित्व होता है) के परे स्थित लङ् के ‘अन्’ के स्थान में ‘उस्’ हो जाता है और वही उसके आगे रहने पर अन्त्यस्वर का गुण विकार हो जाता है।
जैसे—
आजहु + अन् > अजुहबुः
अजागृ + अन् > अजागरुः
> लङ्, लुङ और लुङ् विभक्ति परे रहने से धातु के आदि में अकार हो जाता है। जैसे-
अभवत्, अभूत, भविष्यत् ।
> परन्तु, ‘मा’ और ‘मास्म’ शब्द का योग रहे तो ‘अ’ नहीं होता है। जैसे-
मा भवत्/ मास्मभूत
लङ्, लुङ और लुङ् विभक्तियों में धातु के आदि स्थित इ, ई के स्थान में ऐ, ऊ के स्थान में औ और ऋ के स्थान में ‘आर’ हो जाता है; परन्तु ‘मा’ और ‘मास्म’ रहने पर ‘अ’ नहीं होता है।
जैसे—
इन्द > ऐन्दीत्
ऋच्छ > आर्च्छत्
ईह > ऐहिष्ट
मा > ईहिष्ट
उख > औखीत्
मास्म > ऋच्छत्
> व्यंजन वर्ण के परस्थित होने की स्थिति में लङ् की ‘द्’, ‘स’ इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। जैसे-
अहन् + द् > अहन्
अहन् + स् > अहन्
> स्वर वर्ण परे रहने से धातु के अन्तस्थित इ-ई के स्थान पर ‘इय’ और उ-ऊ के स्थान पर ‘उव्’ हो जाता है। गुण और वृद्धि की संभावना पर ऐसा नहीं होता। जैसे-
अधि + इ + अते > अधीयते
स्तु + अन्ति > स्तुवन्ति
यदि धातु एक से अधिक स्वर विशिष्ट हो तो इ-ई के स्थान में ‘य’ नहीं होता।
जैसे-
दी+ धी+ ईत > दीध्यीत
नि + इरे > निन्यिरे
> असमान स्वर परे रहे तो अभ्यस्त धातु के पूर्व भाग में स्थित इ-ई के स्थान पर ‘इय’ और उ-ऊ के स्थान पर ‘उ’ होता है। जैसे-
इ + आय > इयाय
उ + ओस > उवोष
च्, छ्, ज्, श्, ष, ह्, व् इनके परे दन्त्य स रहे तो दोनों मिलकर ‘क्ष’ हो जाता है।
जैसे-
वच् + स्यति > वक्ष्यति
प्रछ् + स्यति > प्रक्ष्यति
यज् + स्यति > यक्ष्यति
छ् या श् के परे ‘त’ रहे, तो दोनों मिलकर ‘ष्ट’ होगा। थ रहे तो ‘ष्ठ’ हो जाएगा।
जैसे-
प्रछ् + ता >प्रष्टा
दृश् + ता > द्रष्टा
> छ, श् , ष् इन तीनों के परे ‘ध’ रहे तो ‘ड्’ और ‘ध्’ के स्थान में ‘ढ्’ हो जाएगा।
जैसे- अप्रछ + ध्वम् > अप्रड्
अवेश् + ध्वम् > अवेड्ढ्वम्
‘त्’ अथवा ‘थ्’ परे रहे तो ‘च्’ और ‘ज्’ का ‘क्’ और ‘ध्’ परे रहे तो ‘ग्’ हो जाता है।
जैसे—
मोच् + ता > मोक्ता
योज् + ता > योक्ता
मृज्, सृज्, यज्, इन तीन धातुओं के जकार के परे त्’ हो तो दोनों मिलकर ष्ट,’थ्’ रहे तो ष्ट’ और ‘ध्’ हो तो ‘ज्’ की जगह पर ड् और ध् की जगह ‘ढ्’ हो
जाता है।
जैसे-
यज् + ता> यष्टा
असृज् + थाः > असृष्ठाः
त् थ् ध् परे रहने से ‘हकार’ का लोप हो जाता है और त् थ्, ध् के स्थान पर ‘ढ्’ हो जाता है। लुप्त हकार का पूर्व स्थित ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाता है।
जैसे-
गुह् + तः > गूढः
> दिह् , दुह् आदि के हकार के परे त्, थ् अथवा ध् रहे तो दोनों मिलकर ‘ग्ध’ हो जाता है। जैसे-
दह् + तम् > दग्धम्
दुह् + तम् > दुग्धम्
> ‘मुह्’ आदि के हकार के परे त, थ् या ध् रहे तो दोनों मिलकर ‘ग्ध’ होगा या ‘ढ़ः’। जैसे-
मुह् + तः> मुग्धः / मूढः
> विभक्ति का ‘ध्’ परे ‘स् ‘ के स्थान में ‘द’ होगा या सकार का लोप।
जैसे – असेविस् + ध्वम् > असेवियम्/असेविध्वम्
> अ-आ भिन्न स्वर के परवर्ती होने से लिट् लुङ् और आशीर्लिङ् इन तीनों के ‘ध्’ के स्थान में ‘ढ्’ हो जाता है। जैसे-
चकृ + ध्वे > चकृढ्वे (लिट्)
अकृस् + ध्वम् > अकृध्वम् (लुङ)
कृषी + ध्वम् > कृषीढ्वम् (आशीर्लिङ)
> परन्तु य, र, ल, व, ह – इन पांच वर्षों में मिले हुए ‘इट’ के परवर्ती होने पर विकल्प से होता है। जैसे-
शिशयि+ ध्ये > -शिशयिढ्वे/शिशयिध्ये
अशयिस् + ध्वम् > अशयिध्वम् ।
शयिषी+ ध्वम् > शयिषीढ्वम् ।
> धकार के परे त्, थ् या ‘ध्’ रहे तो दोनों मिलकर ‘द्ध’ हो जाता है। जैसे-
सिध् + तम् > सिद्धम् |
विध् + तम् > विद्धम्
> मकार के परे त्, थ् या ध् रहे तो ‘ब्ध’ हो जाता है। जैसे-
आरभ् + तम् > आरब्धम्
लभ् + तम् > लब्धम्
> त्, थ् या स् परे रहने से ‘द्’ के स्थान में ‘त्’ होता है। जैसे-
वेद् + ता > वेत्ता
छेद् + स्यति > छेत्स्यति ।
>‘स्’ परे रहने पर ‘ध्’ के स्थान में त् और भू के स्थान में ‘पू’ हो जाता है। जैसे-
सेध् + स्यति > सेत्स्यति ।
> लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् से भिन्न विभक्तियों का स्’ परे रहने पर धातुओं के अन्तस्थित ‘स्’ के स्थान पर ‘त्’ हो जाता है। जैसे-
अवास् + सीत् > अवात्सीत्
> पद के अन्तस्थित ‘र’ और ‘स्’ के स्थान में विसर्ग हो जाता है। जैसे-
भवतस्-भवतः
भवेयुस्-भवेयुः
> पद के अन्तस्थित वर्ग के 3 रा और 4 था वर्ण के स्थान में अपने-अपने वर्ग का प्रथम वर्ण हो जाता है। जैसे-
अभूद्-अभूत
अभवद्- -अभवत्
> पद के अन्तस्थित च और ज् के स्थान में ‘क्’ हो जाता है और ‘मुज्’ धातु के ‘ज्’ का ‘ट्’ हो जाता है। जैसे
अवच, अवर्क ।
> पद के अन्तस्थित छ्, श्, ष और ह् के स्थान में ‘ट्’ और ‘ड्’ हो जाता है। जैसे-
प्राछ् – प्राट्, प्राड्
अवश्-अवट् ।
> दकारादि धातुओं के पद के अन्तस्थित ‘द्’ के स्थान में ‘क्’ हो जाता है। जैसे-
अदोह, अधोक् (अधोग)
> एक ही वर्ग के तीन वर्ण एकत्र रहने पर मध्य वर्ण का लोप हो जाता है। जैसे-
रुनध् + धि > रुन्धि
> लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ् के अलावा विभक्तियों में एकारान्त, ऐकारान्त और ओकारान्त धातु आकारान्त हो जाते हैं। जैसे—
धे—धास्यति
गै—गाता
सो साता
लकार-निर्णय
(Rules for the use of tenses and moods)
(a) वर्तमाने लट् – वर्तमान काल में धातु के आगे लट् होता है। जैसे-
भवति होता है।
गच्छति—जाता है।
पश्यति—देखता है।
(b) अनद्यतने लङ् – भूतकाल के धातु के आगे लिट्, लङ् और लुङ् होते हैं। जैसे—
जगाम (लिट्)
अगच्छत् (लङ्)
अगमत् (लुङ्)
(c) भविष्यार्थे लृट्—भविष्यत् काल में धातु के आगे लुट् और लृट् होते हैं। जैसे-
गन्ता (लुट्)
गमिष्यति (लुट्)
(d) लट् स्मै—‘स्म’ शब्द के योग में भूतकाल में लट् होता है। जैसे—
एकः नृपः निवसति स्म (एक राजा रहता था।)
(e) माङि लुङ्—’मा’ शब्द के योग में सभी कालों में विकल्प से लुङ् होता है। जैसे-
मा भूतः दुःखम्।
मा भवतु दुःखम् ।
मा भविष्यति दुःखम्।
(F) स्मोत्तरे लङ् च—’मास्म’ शब्द के योग में सर्व काल में लङ् और लुङ् लकार होते हैं। जैसे—
मास्म भवत् शोकः
मास्म भूत शोकः ।
(g) यावत् पुरानिपातयोलिट्—‘यावत्’ और ‘पुरा’ शब्दों के योग में भविष्यत् (लृट् लकार) काल में ‘लट्’ होता है। जैसे—
स यावत् आगच्छति तावत् अहं गमिष्यामि ।
(h) विभाषा कदा कयौंः -‘कदा’ और ‘कहि’ शब्दों के योग में भविष्यत् काल में विकल्प से लट्’ होता है। जैसे-
कदा ददामि न जाने।
कदा दास्यामि न जाने ।
कर्हि भुंक्ते मोक्ष्यते वा।
(i) विभाषा कथमिलिङ् च- ‘कथम्’ शब्द के योग में सभी कालों में विकल्प से ‘लट्’ और ‘विधिलिङ् ‘होते हैं। जैसे—
कथं गच्छसिः ?
कथं गच्छेः ?
(j) जातुयदोर्लिङ्—‘जातु’, ‘यदा’ और ‘यदि’ शब्दों के योग में भविष्यत् काल में विधिलिङ् होता है। जैसे-
वक्ष्यामि यदा स आगच्छेत् ।
दास्यामि यदि स आगच्छेत् ।
जातु हरं निन्देत् न मर्षये।
(k) आशिषि लिङ् लोटौ—‘आशीर्वाद’ अर्थ में धातु के आगे आशीर्लिङ् और लोट् होता है। जैसे-
तव सुखं भूयात् ।
तव सुखं भवतु।
सज्जनश्चिरं जीव्यात् ।
सज्जनश्चिरं जीवतु।
‘आशीर्वाद’ अर्थ में लोट् के ‘तु’ और ‘हि’ के स्थान में विकल्प से ‘तात्’ होता है। जैसे—
तव कुशलं भवतात् ।
तव कुशलं भवतु।
ईश मां पाहि।
(l) विधिनिमंत्रणाधीष्टप्रश्नप्रार्थनपुलिङ् – विधि अर्थ में धातु के आगे विधिलिङ् होता है।
विधि दो प्रकार की होती है—(i) प्रवर्त्तना और (ii) निवर्त्तना।
सत्कर्म में प्रवृत्तिदान का नाम प्रवर्त्तना है और असत्कर्म से निवर्त्तन का नाम निवर्त्तना है ;
जैसे- प्रवर्त्तना के उदाहरण
सत्यं वदेत् । प्रियं ब्रूयात् ।
दीने दयां कुर्यात् ।
क्षुधिताय अन्नं दद्यात् ।
निवर्त्तना के उदहारण
नानृतं वदेत् ।
न गुरुं निन्देत् ।
यात् । आलस्यं परित्यजेत्।
(m) लोट् च – आज्ञा, अनुज्ञा, नियोग, निमंत्रण, प्रार्थना और जिज्ञासा इन सभी अर्थों में विधिलिङ् और लोट् होते हैं। जैसे-
गच्छतु भवान्। (अनुज्ञा)
करोतु भवान् । (नियोग)
इह भुंजीत भवान् । (निमंत्रण)
इह शयीत भवान्। (अनुरोध)
मत्पुत्रमध्यापयेत् भवान् । (प्रार्थना)
किं भो व्याकरणमधीयीय उत्साहित्यम् ? (जिज्ञासा)
(n) हेतुहेतुमतोर्लिङ् – दो क्रियाओं का कार्य – कारणभाव बोध होने से दोनों क्रियाओं केभविष्यत् काल में विधिलिङ् होता है। जैसे-
यदि वाल्ये अधीयीत यावज्जीवनं सुखं लभेत्
यदि प्रियं वदेत् सर्वस्य प्रियो भवेत्।
(o) शकि-लिंग् च–सामर्थ्य अर्थ में धातु के आगे लोट् होता है। जैसे-
सिन्धुमपि शोषयाणि । (समुद्र को भी शुष्क कर सकता हूँ।)
(p) इच्छार्थेषु लिङ् लाटी—इच्छार्थ धातु के योग में विधिलिङ् होता है। जैसे-
इच्छामि भवान् भुंजीत, भुङ्क्तां वा ।
इच्छामि स आगच्छेत् आगच्छतु वा।
(q) लिइ निष्यते लड् क्रियातिपत्ती – क्रिया की असमाप्ति बोध होने से भूतकाल में धातु के आगे लृङ् होता है। जैसे- स चेत् आगमिष्यत तदाहमगमिष्यम् (यदि वह आता तो मैं जाता।)
ज्ञान चेत् अभविष्यत् तदा सुखमभिविष्यत् । (यदि ज्ञान होता तो सुख होता।)
(r) मुहुभृशाचे हितस्वध्वम्- पौनः पुन्य और अतिशय अर्थ बोध होने से सब धातुओं के आगे सब कालों में, सभी पुरुषों में और सभी विभक्तियों में लोट् की हि, त, स्व. ध्वम् ये कई विभक्तियाँ होती हैं। जैसे— पुनः पुनः अतिशयेन वा हरति, जहार, हरिष्यति-इन अर्थों में हरत, हरस्व, हरध्वम् इस प्रकार के पद होते हैं।
भ्वादि गण (First Conjugation)
लट्, लोट्, लङ् और विधिलिङ् – इन चार लकारों में भ्वादिगी धातु के उत्तर ‘अ’ होता है। ‘अ’ अन्तिम वर्ण में सदा युक्त होता है।
भ्वादिगणीय निम्नलिखित धातुओं के निम्नलिखित परिवर्तन केवल लट्, लोट्, लङ् और विधिलिङ् में होते हैं-
दृश् – पश्य
सृ – धौ
शद् – शीय
सद् – सीद
पा – पिब्
यम् – यच्छ
इष् – इच्छ
म्ना – मन्
दाण – यच्छ् स्था – तिष्ठ
ऋ – ऋच्छ
घ्रा – जिघ्र
गम् – गच्छ
ध्मा – धम्
परस्मैपद द्विवचनबहुवचन
‘भू-भव् (होना, To be) लट् लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भवति | भवतः | भवन्ति |
मध्यम पुरुष | भवसि | भवथः | भवथ |
उत्तम पुरुष | भवामि | भवावः | भवामः |
लोट् (अनुज्ञा, Imperative mood)
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भवतु | भवताम् | भवन्तु |
मध्यम पुरुष | भव | भवतम् | भवत |
उत्तम पुरुष | भवानि | भवाव | भवाम |
लङ् (अनद्यतन भूत, Past Tense)
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | अभवत् | अभवताम् | अभवन् |
मध्यम पुरुष | अभवः | अभवतम् | अभवत |
उत्तम पुरुष | अभवम् | अभवाव | अभवाम |
लृट् (भविष्यत् काल, Future Tense)
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भविष्यति | भविष्यतः | भविष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | भविष्यसि | भविष्यथः | भविष्यथ |
उत्तम पुरुष | भविष्यामि | भविष्यावः | भविष्यामः |
विधिलिङ् (चाहिए, Potential mood)
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | भवेत् | भवेताम् | भवेयुः |
मध्यम पुरुष | भवेः | भवेतम् | भवेत |
उत्तम पुरुष | भवेयम् | भवेव | भवेम |
लिट् (परोक्षभूत, Past Perfect Tense)
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | वभूव | वभूवतुः | वभूवुः |
मध्यम पुरुष | वभूविथ | वभूवथुः | वभूव |
उत्तम पुरुष | वभूव | वभूविव | वभूविम |
गम्-गच्छ (जाना, To go) परस्मैपद
लट् लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | गच्छति | गच्छतः | गच्छन्ति |
मध्यम पुरुष | गच्छसि | गच्छथः | गच्छथ |
उत्तम पुरुष | गच्छामि | गच्छावः | गच्छामः |
लोट् लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | गच्छतु | गच्छताम् | गच्छन्तु |
मध्यम पुरुष | गच्छ | गच्छतम् | गच्छत् |
उत्तम पुरुष | गच्छानि | गच्छाव | गच्छाम |
लङ्लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | अगच्छत् | अगच्छताम् | अगच्छन् |
मध्यम पुरुष | अगच्छः | अगच्छतम् | अगच्छत |
उत्तम पुरुष | अगच्छम् | अगच्छाव | अगच्छाम |
लुट्लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | गमिष्यति | गमिष्यतः | गमिष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | गमिष्यसि | गमिष्यथः | गमिष्यथ |
उत्तम पुरुष | गमिष्यामि | गमिष्यावः | गमिष्यामः |
विधिलिङ्
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | गच्छेत् | गच्छेताम् | गच्छेयुः |
मध्यम पुरुष | गच्छेः | गच्छेताम् | गच्छेत |
उत्तम पुरुष | गच्छेयम् | गच्छेव | गच्छेम |
लिट् लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | जगाम | जग्मतुः | जग्मुः |
मध्यम पुरुष | जग्मिथ/जगन्थ | जग्मथुः | जग्म |
उत्तम पुरुष | जगाम/जगम | जग्मिव | जग्मिम |
दृश् (देखना, To see) परस्मैपद
लट् लकार
एकवचन | द्विवचन | बहुवचन | |
प्रथम पुरुष | पश्यति | पश्यतः | पश्यन्ति |
मध्यम पुरुष | पश्यसि | पश्यथः | पश्यथ |
उत्तम पुरुष | पश्यामि | पश्यावः | पश्यामः |
लोट् लकार
पश्यतु | पश्यताम् | पश्यन्तु | |
पश्य | पश्यतम् | पश्यत् | |
पश्यानि | पश्याव | पश्याम |
विधिलिङ्
पश्येत् | पश्येताम् | पश्येयुः | |
पश्ये: | पश्येतम् | पश्येत | |
पश्येयम् | पश्येव | पश्येम् |
लङ्लकार
अपश्यत् | अपश्यताम् | अपश्यन् | |
अपश्यः | अपश्यतम् | अपश्यत् | |
अपश्यम् | अपश्याव | अपश्याम |
लृट् लकार
द्रक्ष्यति | द्रक्ष्यतः | द्रक्ष्यन्ति | |
द्रक्ष्यसि | द्रक्ष्यथः | द्रक्ष्यथ | |
द्रक्ष्यामि | द्रक्ष्याव: | द्रक्ष्यामः |
लिट् लकार
ददर्श | ददृशतुः | ददृशुः | |
ददर्शिथ/दद्रष्ठ | ददृशथुः | ददृश | |
ददर्श | ददृशिव | ददृशिम |
पा-पिव् (पीना, To drink) परस्मैपद
पिवति | पिवतः | पिवन्ति | |
पिवसि | पिवथः | पिवथ | |
पिवामि | पिवावः | पिवामः |
लोट् लकार
पिवतु. | पिवताम् | पिवन्तु | |
पिव | पिवतम् | पिवत | |
पिवानि | पिवाव | पिवाम |
लङ् लकार
अपिवत् | अपिवताम् | अपिवन् | |
अपिवः | अपिवतम् | अपवत | |
अपिवम् | अपिवाम | अपिवाम |
विधिलिङ्
पिवेत् | पिवेताम् | पिवेयुः | |
पिवेः | पिवेतम् | पिवेत | |
पिवेयम् | पिवेव | पिवेम |
लृट् लकार
पास्यति | पास्यतः | पास्यन्ति | |
पास्यसि | पास्यथः | पास्यथ | |
पास्यामि | पास्यावः | पास्यामः |
लिट् लकार
पपौ | पपतुः | पपुः | |
पपिथ/पपाथ | पपथुः | पप | |
पपौ | पपिव | पपिम |
जि (जीतना, To comuer) परस्मैपद
लट् लकार
जयति | जयतः | जयन्ति | |
जयसि | जयथः | जयथ | |
जयामि | जयावः | जयामः |
लोट् लकार
जयतु | जयताम् | जयन्तु | |
जय | जयतम् | जयत | |
जयानि | जयाव | जयाम |
ललकार
अजयत् | अजयताम् | अजयन् | |
अजयः | अजयतम् | अजयत | |
अजयम् | अजयाव | अजयाम |
विधिलिङ् लकार
जयेत् | जयेताम् | जयेयुः | |
जयेः | जयेतम् | जयेत | |
जयेयम् | जयेव | जयेम |
लृट् लकार
जेष्यति | जेष्यतः | जेष्यन्ति | |
जेष्यसि | जेष्यथः | जेष्यथ | |
जेष्यामि | जेष्यावः | जेष्यामः |
लिट् लकार
जिगाय | जिग्यतुः | जिग्युः | |
जिगयिथ/जिगेथ | जिग्यथुः | जिग्य | |
जिगाय | जिग्यिव | जिग्यिम |
घा-जिय (सूंघना, To smell) परस्मैपद
लट् लकार
जिघ्रति | जिघ्रतः | जिघ्रन्ति | |
जिघ्रसि | जिघ्रथः | जिघ्रथ | |
जिघ्रामि | जिघ्रावः | जिघ्रामः |
लोट् लकार
जिघ्रतु | जिघ्रताम् | जिघ्रन्तु | |
जिघ्र | जिघ्रतम् | जिघ्रत | |
जिघ्राणि | जिघ्राव | जिघ्राम |
लङ् लकार
अजिघ्रत् | अजिघ्रताम् | अजिघ्रन् | |
अजिघ्रः | अजिघ्रतम् | अजिघ्रत | |
अजिघ्रम् | अजिघ्राव | अजिघ्राम |
विधिलिडू
जिभ्रेत् | जिभ्रेताम् | जिभ्रेयुः | |
जिभ्रे: | जिभ्रेतम् | जिभ्रेत | |
जिभ्रेयम् | जिभ्रेव | जिभ्रेम |
लृट् लकार
घ्रास्यति | घ्रास्यतः | घ्रास्यन्ति | |
घ्रास्यसि | घ्रास्यथः | घ्रास्यथ | |
घ्रास्यमि | घ्रास्यावः | घ्रास्यामः |
लिट् लकार
जनौ | जघ्रतुः | जघुः | |
जघ्रिथ/जघ्राथ | जघ्रतु | जघ्र | |
जनौ | जघ्रिव | जघ्रिव |
पत् (गिरना, To fall) परस्मैपद
लट् लकार
पतति | पततः | पतन्ति | |
पतसि | पतथः | पतथ | |
पतामि | पतावः | पतामः |
लोट् लकार
पततु | पतताम् | पतन्तु | |
पत | पततम् | पतत | |
पतानि | पताव | पताम |
लङ् लकार
अपतत् | अपतताम् | अपतन् | |
अपतः | अपततम् | अपतत | |
अपतम् | अपताव | अपताम् |
विधिलिङ् लकार
पतेत् | पतेताम् | पतेयुः | |
पतेः | पतेतम् | पतेत | |
पतेयम् | पतेव | पतेम |
लृट् लकार
पतिष्यति | पतिष्यतः | पतिष्यन्ति | |
पतिष्यसि | पतिष्यथः | पतिष्यथ | |
पतिष्यामि | पतिष्यावः | पतिष्यामः |
लिट् लकार
पपात | पेततुः | पेतुः | |
पेतिथ | पेतथुः | पेत | |
पपात/पपत | पेतिव | पेतिम |
वस् (रहना/निवास करना, To dwell) परस्मैपद
लट् लकार
वसति | वसतः | वसान्ति | |
वससि | वसथः | वसथ | |
वसामि | वसावः | वसामः |
लोट् लकार
वसतु | वसताम् | वसन्तु | |
वस | वसतम् | वसत | |
वसानि | वसाव | वसाम |
लङ् लकार
अवसत् | अवसातम् | अवसन् | |
अवसः | अवसतम् | अवसत | |
अवसम् | अवसाव | अवसाम |
लृट् लकार
वत्स्यति | वत्स्यतः | वत्स्यन्ति | |
वत्स्यसि | वत्स्यथः | वत्स्यथ | |
वत्स्यामि | वत्स्यावः | वत्स्यामः |
लिट् लकार
उवास | ऊषतुः | ऊषुः | |
उवसिथ/उवस्थ | उषथुः | ऊष | |
उवास/उवस | उषिव | उषिम |
वद् (बोलना, To speak) परस्मैपद
लट् लकार
वदति | वदतः | वदन्ति | |
वदसि | वदथः | वदथ | |
वदामि | वदावः | वदामः |
लोट् लकार
वदतु | वदताम् | वदन्तु | |
वद | वदतम् | वदत | |
वदानि | वदाव | वदाम |
लोट् लकार
अवदत् | अवदताम् | अवदन् | |
अवदः | अवदतम् | अवदत | |
अवदम् | अवदाव | अवदाम |
विधिलिङ्
वदेत् | वदेताम् | वदेयुः | |
वदेः | वदेतम् | वदेत | |
वदेयम् | वदेव | वदेम |
लृट् लकार
वदिष्यति | वदिष्यतः | वदिष्यन्ति | |
वदिष्यसि | वदिष्यथः | वदिष्यथ | |
वदिष्यामि | वदिष्यावः | वदिष्यामः |
लिट् लकार
उवाद् | ऊदतुः | ऊतुः | |
उवदिथि | ऊदथुः | ऊद | |
उवाद/उवद | ऊदिव | ऊदिम |
स्था (तिष्ठ) (ठहरना, To wait/To stay)
लट् लकार
तिष्ठति | तिष्ठतः | तिष्ठन्ति | |
तिष्ठसि | तिष्ठथः | तिष्ठथ | |
तिष्ठामि | तिष्ठावः | तिष्ठामः |
लोट् लकार
तिष्ठतु | तिष्ठताम् | तिष्ठन्तु | |
तिष्ठ | तिष्ठतम् | तिष्ठत | |
तिष्ठानि | तिष्ठाव | तिष्ठाम |
लङ् लकार
अतिष्ठत् | अतिष्ठताम् | अतिष्ठन् | |
अतिष्ठः | अतिष्ठतम् | अतिष्ठत | |
अतिष्ठम् | अतिष्ठाव | अतिष्ठाम |
विधिलिङ्
तिष्ठेत् | तिष्ठेताम् | तिष्ठेयुः | |
तिष्ठेः | तिष्ठेतम् | तिष्ठेत | |
तिष्ठेयम् | तिष्ठेव | तिष्ठेम् |
लट लकार
स्थास्यति | स्थास्यतः | स्थास्यन्ति | |
स्थास्यसि | स्थास्यथः | स्थास्यथ | |
स्थास्यामि | स्थास्यावः | स्थास्यामः |
लृट् लकार
तस्थौ | तस्थतुः | तस्थुः | |
तस्थिथ/तस्थाथ | तस्थथुः | तस्थ | |
तस्थौ | तस्थिव | तस्थिम |
जि-जय (जीतना, To conquer)
लट् लकार
जयति | जयतः | जयन्ति | |
जयसि | जयथः | जयथ | |
जयामि | जयावः | जयामः |
लोट् लकार
जयतु | जयताम् | जयन्तु | |
जय | जयतम् | जयत | |
जयानि | जयाव | जयाम |
लङ्लकार
अजयत् | अजयताम् | अजयन् | |
अजयः | अजयतम् | अजयत | |
अजयम् | अजयाव | अजयाम |
विधिलिङ्
जयेत् | जयेताम् | जयेयुः | |
जयः | जयेतम् | जयेत | |
जयेयम् | जयेव | जयेम |
लृट् लकार
जेष्यति | जेष्यतः | जेष्यन्ति | |
जेष्यसि | जेष्यथः | जेष्यथ | |
जेष्यामि | जेष्यावः | जेष्यामः |
ध्यातव्य – स्मृ-स्मर (स्मरण करना—To remember)
सिध्-सेध (गमन करना-Togo)
शुच्–शोच् (शोक करना-To weep/to regret/to mourn)
इन तीनों धातुओं के रूप ‘भू’ के समान होते हैं। ‘सन’ (संग करना To stick) और ‘दनश्’ (दाँत से काटना To bite) के ‘न’ का लोप हो जाता है।
क्रम्-काम-(चलना, To pace)
लृट् लकार
क्रमिष्यति | क्रमिष्यतः | क्रमिष्यन्ति | |
क्रमिष्यसि | क्रमिष्यथः | क्रमिष्यथ | |
क्रमिष्यामि | क्रमिष्यावः | क्रमिष्यामः |
ध्यातव्य-अन्य लकारों में ‘क्रम्’ (क्राम्) के रूप ‘भू’ के समान होते हैं।
सद्-सीद् (दुःख पाना, To be sad)
लृट् लकार
सत्स्यति | सत्स्यतः | सत्स्यन्ति | |
सत्स्यसि | सत्स्यथः | सत्स्यथ | |
सत्स्यामि | सत्स्यावः | सत्स्यामः |
ध्यातव्य —अन्य लकारों मे ‘भू’ के समान रूप होंगे।
व्ठिव्-ष्ठी (थूकना, To spit)
लृट् लकार
ष्ठेविष्यति | ष्ठेविष्यतः | ष्ठेविष्यन्ति | |
ष्ठेविष्यसि | ष्ठेविष्यथः | ष्ठेविष्यथ | |
ष्ठेविष्यामि | ष्ठेविष्यावः | ष्ठेविष्यामः |
ध्यातव्य-अन्य लकारों में ‘भू’ के समान रूप होंगे।
दाण-यच्छ् (देना, To give)
लृट् लकार
दास्यति | दास्यतः | दास्यन्ति | |
दास्यसि | दास्यथः | दास्यथ | |
दास्यामि | दास्यावः | दास्यामः |
ध्यातव्य-अन्य लकारों में ‘भू’ के समान रूप होंगे।
‘ब्रा’-जिघ्र (सूंघना, to smell)
लृट् लकार
घ्रास्यति | घ्रास्यतः | घ्रास्यन्ति इत्यादि |
ध्यातव्य – अन्य लकारों में जिघ्रति जिघ्रतः जिघ्रन्ति इत्यादि
आत्मनेपद
लभ् (प्राप्त करना, To obtain)
लभते | लभेते | लभन्ते | |
लभसे | लभेथे | लभध्वे | |
लभे | लभावहे | लभामहे |
लोट् लकार
लभताम् | लभेताम | लभन्ताम् | |
लभस्व | लभेथाम् | लभध्वम् | |
लभै | लभावहै | लभामहै |
लड् लकार
अलभवत् | अलभेताम् | अलभन्ताम् | |
अलभथाः | अलभेथाम् | अलभध्वम् | |
अलभे | अलभावहि | अलभामहि |
विधिलिङ्
लभेत् | लभेयाताम् | लभेरन् | |
लभेथः | लभेयाथाम् | लभेध्वम् | |
लभेय | लभेवहि | लभेमहि |
लिट् लकार
लेभे | लेभाते | लेभिरे | |
लेभिषे | लेभाथे | लेभिध्वे | |
लेभे | लेभिवहे | लेभिमहे |
लृट् लकार
लप्स्यते | लप्स्येते | लप्स्यन्ते | |
लप्स्यसे | लप्स्येथे | लप्स्यध्वे | |
लप्स्ये | लप्स्यावहे | लप्स्यामहे |
वृत् (वर्तमान रहना, To be, To exist)
लट् लकार
वर्त्तते | वर्तेते | वर्तन्ते | |
वर्त्तसे | वर्तेथे | वर्तध्ये | |
वर्ते | वर्तावहे | वर्तामहे |
लोट् लकार
वर्त्तताम् | वर्तेताम् | वर्त्तन्ताम् | |
वर्तस्व | वर्तेथाम् | वर्तध्वम् | |
वर्ते | वर्तावहै | वर्तामहै |
लङ्लकार
अवर्तत | अवर्तेताम् | अवर्तन्त | |
अवर्त्तथाः | अवर्तेथाम् | अवर्त्तध्वम् | |
अवर्ते | अवर्तावहि | अवर्तामहि |
विधिलिङ्
वर्तेत | वर्तेयाताम् | वर्त्तरन् | |
वर्तेथाः | वर्त्तयाथाम् | वर्तेध्वम् | |
वर्तेय | वर्तेवहि | वर्त्तमहि |
लृट् लकार
वर्तिष्यते | वर्तिष्येते | वर्तिष्यन्ते | |
वर्तिष्यसे | वत्तिष्येथे | वर्तिष्यध्वे | |
वर्तिष्ये | वर्तिष्यावहे | वर्तिष्यामहे |
लिट् लकार
ववृते | ववृताते | ववृतिरे | |
ववृतिषे | ववृताथे | ववृतिध्वे | |
ववृते | ववृतिवहे | ववृतिमहे |
सेव (सेवा करना, Tonurse/To worship)
लट् लकार
सेवते | सेवेते | सेवन्ते | |
सेवसे | सेवेथे | सेवध्वे | |
सेवे | सेवावहे | सेवामहे |
लोट् लकार
सेवताम् | सेवेताम् | सेवन्ताम् | |
सेवस्व | सेवेथाम् | सेवध्वम् | |
सेव | सेवावहै | सेवामहै |
लड् लकार
असेवत | असेवेताम् | असेवन्त | |
असेवेथाः | असेवेथाम् | असेवेध्यम् | |
असेवे | असेवावहि | असेवामहि |
विधिलिङ्
सेवेत | सेवेयाताम् | सेवेरन् | |
सेवेथाः | सेवेयाथाम् | सेवेध्वम् | |
सेवेय | सेवेवहि | सेवेमहि |
लृट् लकार
सेविष्यते | सेविष्येते | सेविष्यन्ते | |
सेविष्यसे | सेविष्येथे | सेविष्यध्वे | |
सेविष्ये | सेविष्यावहे | सेविष्यामहे |
स्वनज् (आलिंगन करना, To embrace)
लट् लकार
स्वजते | स्वजेते | स्वजन्ते | |
स्वजसे | स्वजेथे | स्वजध्वे | |
स्वजे | स्वजावहे | स्वजामहे |
लोट् लकार
स्वजताम् | स्वजेताम् | स्वजन्ताम् | |
स्वजस्व | स्वजेथाम् | स्वजध्वम् | |
स्वजै | स्वजावहै | स्वजामहै |
लड् लकार
अस्वजत | अस्वजेताम् | अस्वजन्त | |
अस्वजेथाः | अस्वजेथाम् | अस्वजेध्वम् | |
अस्वजे | अस्वजावहि | अस्वजामहि |
विधिलिङ्
स्वजेत | स्वजेयाताम | स्वजेरन् | |
स्वजेथाः | स्वजेयाथाम् | स्वजेध्वम् | |
स्वजेय | स्वजेवहि | स्वजेमहि |
लृट् लकार
स्वंक्ष्यते | स्वक्ष्येते | स्वंक्ष्यन्ते | |
स्वंक्ष्यसे | स्वक्ष्येथे | स्वंक्ष्यध्वे | |
स्वक्ष्ये | स्वंक्ष्यावहे | स्वंक्ष्यामहे |
धावू (उभयपदी) (दौड़ना/साफ करना)
लट् लकार (परस्मैपद)
धावति | धावतः | धावन्ति | |
धावसि | धावथः | धावथ | |
धावामि | धावावः | धावामः |
आत्मनेपद
धावते | धावेतेः | धावन्ते | |
धावसे | धावेथेः | धावध्वे | |
धावे | धावावहे | धावायहे |
व्यालय-अन्य लकारों के रूप ‘भू’ के समान होते हैं।
‘गुहू’ (उभयपदी) (छिपाना, To hide)
लट् लकार (परस्मैपद)
गृहति | गूहतः | गृहन्ति | |
गृहसि | गूहथः | गूहथ | |
गूहामि | गूहावः | गृहामः |
आत्मनेपद
गूहते | गृहेते | गूहन्ते | |
गृहसे | गृहेथे | गृहध्वे | |
गृहे | गूहावहे | गूहामहे |
लृट् लकार (परस्मैपद)
गूहिष्यति घोक्ष्यति | गृहष्यितः घोक्ष्यतः | गूहिष्यन्ति घोक्ष्यन्ति | |
गूहिष्यसि घोक्ष्यसि | गूहिष्यथः घोक्ष्यथः | गृहिष्यथ घोक्ष्यथ | |
गूहिष्यामि घोक्ष्यामि | गूहिष्यावः घोक्ष्यावः | गूहिष्यामः घोक्ष्यामः |
आत्मनेपद
गृहष्यते घोक्ष्यते | गूहिष्येते घोक्ष्येते | गूहिष्यन्ते घोक्ष्यन्ते | |
गृहिष्यसे घोक्ष्यसे | गूहिष्येथे घोक्ष्येथे | गूहिष्यध्वे घोष्यध्वे | |
गूहिष्ये घोक्ष्ये | गूहिष्यावहे घोक्ष्यावहे | गूहिष्यामहे घोक्ष्यामहे |
अदादिगण (Second Conjugation)
ध्यातव्य – अदादिगण में गण चिह्न कुछ भी नहीं रहता है। धातु का अंत्यक्षर विभक्ति से मिल जाता है। जैसे—अद् + ति = अत्ति।
लट् लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन को, लोट् लकार के प्रथम पुरुष के एकवचन को और उत्तम पुरुष के तीनों वचनों को तथा लङ् लकार के तीनों पुरुषों के एकवचन को छोड़कर शेष विभक्तियों में ‘अस्’ धातु के अकार का लोप हो जाता है।
जैसे—अस्ति-स्तः–सन्ति ।
विधिलिङ् की सभी विभक्तियों में अकार का लोप हो जाता है । जैसे—स्यात् – स्याताम् – स्युः।
‘अस्’ धातु के लोट् लकार के मध्यमपुरुष एकवचन में एधि, हन् धातु के लोट मध्यमपुरुष एकवचन में जहि और शास् धातु के लोट् मध्यमपुरुष एकवचन में शाधि रूप हो जाते हैं।
‘अस्’ धातु लट्, लोट्, लङ् और विधिलिङ् को छोड़कर अन्य लकारों में ‘भू’ हो जाता है और ‘भू’ धातु के ही रूप होते हैं।
‘हन्’ धातु के लट्, लोट् और लङ् लकार के प्रथम पुरुष बहुवचन में ‘घ्नन्तु’ हो जाता है।
जैसे- हन् + लट् + अन्ति > घ्नन्ति
हन् + लोट् + अन्तु > घ्नन्तु
हन् + लङ् + अन् > अघ्नन्
ति, सि, मि, तु, आनि, आव, आम, ए, आवहै, द्, स् और अम् विभक्तियों में अददादिगणीय धातुओं के अन्त्य स्वर और आधा लघु स्वर का गुण होता है।
अद् धातु (भोजन करना, To eat) परस्मैपद
लट् लकार
अत्ति | अत्तः | अदन्ति | |
अत्सि | अत्थः | अत्थ | |
अदमि | अद्वः | अद्मः |
लोट् लकार
अत्तु | अत्ताम् | अदन्तु | |
अद्धि | अत्तम् | अत्त | |
अदानि | अदाव | अदाम |
लङ् लकार
आदत् | आत्ताम् | आदन् | |
आदः | आत्तम् | आत्त | |
आदम् | आद्ध | आदम् |
विधिलिङ्
अद्यात् | अद्याताम् | आदयुः | |
अद्याः | अद्यातम् | अद्यात | |
अद्याम् | अद्याव | अद्याम |
लृट् लकार
अत्स्यति | अत्स्यतः | अत्स्यन्ति | |
अत्स्यसि | अत्स्यथः | अत्स्यथ | |
अत्स्यामि | अत्स्यावः | अत्स्यामः |
‘अस्’ धातु (होना, To be) परस्मैपद
लट् लकार
अस्ति | स्तः | सन्ति | |
असि | स्थः | स्थ | |
अस्मि | स्वः | स्मः |
लोट लकार
अस्तु | स्ताम् | सन्तु | |
एधि | स्तम् | स्त | |
असानि | असाव | असाम |
लङ् लकार
आसीत् | अस्ताम् | आसन् | |
आसीः | आस्तम् | आस्त | |
आसम् | आस्व | आस्म |
विलिलिङ् लकार
स्यात् | स्याताम् | ||
स्याः | स्यातम् | स्यात् | |
स्याम् | स्याव | स्याम |
लृट् लकार—इसमें ‘अस्’ का ‘भू’ होकर रूप चलता है।
‘हन्’ धातु (मारना, To kill) परस्मैपद
लट् लकार
हन्ति | हतः | घ्नन्ति | |
हन्सि | हथः | ||
हन्मि | हन्वः |
लोट् लकार
हताम् | घ्नन्तु | ||
जहि | हतम् | ||
हनानि | हनाव | हनाम |
लङ् लकार
अहन् | अहताम् | ||
अहन् | अहतम् | अहत | |
अहनम् | अहन्व | अहन्म |
विधिविङ्
हन्यात् | हन्याताम् | हन्युः | |
हन्याः | हन्यातम् | हन्यात | |
हन्याम् | हन्याव | हन्याम |
लृट् लकार
हनिष्यति | हनिष्यतः | हनिष्यन्ति | |
हनिष्यसि | हनिष्यथः | हनिष्यथ | |
हनिष्यामि | हनिष्यावः | हनिष्यामः |
विद् ‘धातु (जानना, To know) परस्मैपद
लट् लकार
वेत्ति | वित्तः | विदन्ति | |
वेत्सि | वित्थः | वित्थ | |
वेद्मि | विद्वः | विद्मः |
लोट् लकार
वेत्तु | वित्ताम् | विदन्तु | |
विद्धि | वित्तम् | वित्त | |
वेदानि | वेदाव | वेदाम |
लङ् लकार
अवेत् | अवित्ताम् | अविदुः/अविदन् | |
अवेत् | अवित्तम् | अवित्त | |
अवेदम् | अविद्व | अविद्म |
विविधिङ्
विद्यात् | विद्याताम् | विद्युः | |
विद्याः | विद्यातम् | विद्यात | |
विद्याम् | विद्याव | विद्याम |
लृट् लकार
वेदिष्यति | वेदिष्यतः | वेदिष्यन्ति | |
वेदिष्यसि | वेदिष्यथ: | वेदिष्यथ | |
वेदिष्यामि | वेदिष्यावः | वेदिष्यामः |
‘या’ धातु (जाना,To go) परस्मैपद
लट् लकार
याति | यातः | यान्ति | |
यासि | याथः | याथ | |
यामि | यावः | यामः |
लोट् लकार
यातु | याताम् | यान्तु | |
याहि | यातम् | यात | |
यानि | याव | याम |
लङ् लकार
अयात् | अयाताम् | अयुः/अयान् | |
अयाः | अयातम् | अयात | |
अयाम् | अयाव | अयाम |
विधिलिङ्
यायात् | यायाताम् | यायुः | |
यायाः | यायातम् | यायात | |
यायाम् | यायाव | यायाम |
लृट् लकार
यास्यति | यास्यतः | यास्यन्ति | |
यास्यसि | यास्यथः | यास्यथ | |
यास्यामि | यास्यावः | यास्यामः |
‘रुद्’ धातु (रोना, To weep) परस्मैपद
लट् लकार
रोदिति | रुदितः | रुदन्ति | |
रोदिषि | रुदिथः | रुदिथ | |
रोदिमि | रुदिवः | रुदिमः |
लोट् लकार
रोदितु | रुदिताम् | रुदन्तु | |
रुदिहि | रुदितम् | रुदित | |
रोदानि | रोदाव | रोदाम |
लङ् लकार
अरोदीत्/अरोदत् | अरुदिताम् | अरुदन् | |
अरोदीः/अरोदः | अरुदितम् | अरुदित | |
अरोदम् | अरुदिव | अरुदिम |
विधिलिङ्
रुद्यात् | रुद्याताम् | रुद्युः | |
रुद्याः | रुद्यातम् | रुद्यात | |
रुद्याम् | रुद्याव | रुद्याम |
लृट् लकार
रोदिष्यति | रोदिष्यतः | रोष्यिन्ति | |
रोदिष्यसि | रोदिष्यथः | रोदिष्यथ | |
रोदिष्यामि | रोदिष्यावः | रोदिष्यामः |
‘जागृ’ धातु (जागना, To wake) परस्मैपद
लट् लकार
जागर्ति | जागृतः | जाग्रति | |
जागर्षि | जागृथः | जागृथ | |
जागर्मि | जागृवः | जागृमः |
लोट् लकार
जागर्तु | जागृताम् | जाग्रतु | |
जागृहि | जागृतम् | जागृत | |
जागराणि | जागराव | जागराम |
लङ् लकार
अजागः | अजागृताम् | अजागरुः | |
अजागः | अजागृतम् | अजागृत | |
अजागरम् | अजागृव | अजागृम |
विधिलिड्
जागृयात् | जागृयाताम् | जागृयुः | |
जागृयाः | जागृयाताम् | जागृयात | |
जागृयाम् | जागृयाव | जागृयाम |
लृट् लकार
जागरिष्यति | जागरिस्यतः | जागरिष्यन्ति | |
जागरिष्यसि | जागरिष्यथः | जागरिष्यथ | |
जागरिष्यामि | जागरिष्यावः | जागरिष्यामः |
‘इ’ धातु (आना, To come) परस्मैपद
लट् लकार
एति | इतः | यन्ति | |
एषि | इथः | इथ | |
एमि | एवः | इमः |
लोट् लकार
एतु | इताम् | यन्तु | |
इहि | इतम् | इत | |
अयानि | अयाव | अयाम |
लङ् लकार
ऐत | ऐताम् | आयन् | |
ऐः | ऐतम् | ऐत | |
आयम् | ऐव | ऐम |
विधिलिङ्
इयात् | इयाताम् | इयुः | |
इयाः | इयातम् | इयात | |
इयाम् | इयाव | इयाम |
लृट् लकार
एष्यति | एष्यतः | एष्यन्ति | |
एष्यसि | एष्यथः | एष्यथ | |
एष्यामि | एष्याव: | एष्यामः |
‘आस्’ पातु (बैठना, Tosit/stay) आत्मनेपद
लट् लकार
आस्ते | आसाते | आसते | |
आस्से | आसाथे | आध्ये | |
आसे | आस्वहे | आस्महे |
लोट् लकार
आस्ताम् | आसाताम् | आसताम् | |
आस्व | आसाथाम् | आध्वम् | |
आसै | आसावहै | आसामहै |
लङ्लकार
आस्त | आसाताम् | आसत | |
आस्थाः | आसाथाम् | आध्वम् | |
आसै | आस्वहि | आस्महि |
विधिलिड
आसीत | आसीयाताम् | आसीरन् | |
आसीथाः | आसीयाथाम् | आसीध्वम् | |
आसीय | आसीवहि | आसीमहि |
लृट् लकार
आसिष्यते | आसिष्येते | आसिष्यन्ते | |
आसिष्यसे | आसिष्येथे | आसिष्यध्वे | |
आसिष्ये | आसिष्यावहे | आसिष्यामहे |
‘शी’ धातु (सोना, To sleep) आत्मनेपद
लट् लकार
शेते | शयाते | शेरते | |
शेषे | शयाथे | शेध्वे | |
शेये | शेवहे | शेमहे |
लोट् लकार
शेताम् | शयाताम् | शेरताम् | |
शेष्व | शयाथाम् | शेध्वम् | |
शयै | शयावहै | शयामहै |
लोट् लकार
अशेत | अशयाताम् | अशेरत | |
अशेथाः | अशयाथाम् | अशेध्वम् | |
अशयि | अशेवहि | अशेमहि |
विधिलिड्
शयीत | शयीयाताम् | शयीरन | |
शयीथाः | शयीयाथम् | शयीध्वम् | |
शयीय | शयीवहि | शयीमहि |
लृट् लकार
शयिष्यते | शयिष्येते | शयिष्यन्ते | |
शयिष्यसे | शयिष्येथे | शयिष्यध्वे | |
शयिष्ये | शयिष्यावहे | शयिष्यामहे |
‘द्विष्’ धातु (उभयपदी) (द्वेष करना, To hate) परस्मैपद
लट् लकार
द्वेष्टि | द्विष्टः | द्विषन्ति | |
द्वेक्षि | द्विष्ठः | द्विष्ठ | |
द्वेष्मि | द्विष्वः | द्विष्मः |
(आत्मनेपद)
द्विष्टे | द्विषाते | द्विषते | |
द्विक्षे | द्विषाथे | द्विवड्ढे | |
द्विषे | द्विष्वहे | द्विष्महे |
लोट् लकार (परस्मैपद)
द्वेष्टु | द्विष्टाम् | द्विषन्तु | |
द्विइडि | द्विष्ठम् | द्विष्ट | |
द्वेषाणि | द्वेषाव | द्वेषाम |
आत्मनेपद
द्विष्टाम् | द्विषाताम् | द्विषताम् | |
द्विश्व | द्विषाथाम् | द्विड्ढ्वम् | |
द्वेषै | द्वेषावहै | द्वेषामहै |
लङ् लकार (परस्मैपद)
अद्वेट/अद्वेड् | अद्विष्टाम | अद्विषु/अद्विषन् | |
अद्वेट/अद्वेड् | अद्विष्टम् | अद्विष्ट | |
अद्वेष्म् | अद्विष्व | अद्विष्म |
आत्मनेपद
अद्विष्ट | अद्विषाताम् | अद्विषत | |
अद्विष्ठाः | अद्विषाथाम् | अद्विषध्वम् | |
अद्विषि | अद्विष्वहि | अद्विष्महि |
‘ब’ धातु (उपयपदी) (बोलना, To speak)
लृट् लकार
वक्ष्यति | वक्ष्यते | आदि । |
लट् लकार (परस्मैपद)
ब्रवीति | बूतः | ब्रुवन्ति | |
ब्रवीषि | ब्रूथः | ब्रूथ | |
ब्रवीमि | ब्रूवः | ब्रूमः |
आत्मनेपद
ब्रूते | ब्रूवाते | ब्रूवते | |
ब्रूषे | ब्रूवाथे | ब्रूध्वे | |
ब्रूवे | ब्रूवहे | ब्रूमहे |
च्यातव्य – ति, तस्, आन्ति, सि, थस् – इन पाँच विभक्तियों के साथ ‘ब्रू’ धातु के स्थान में यथाक्रम विकल्प से आह, आहतुः, आहुः, आत्थ, आहथुः– ये पाँच पद होते हैं।
लोट् लकार (परस्मैपद)
ब्रवीतु | ब्रूताम् | ब्रुवन्तु | |
ब्रूहि | ब्रूतम् | ब्रूत | |
ब्रवाणि | ब्रवाव | ब्रवाम |
आत्मनेपद
ब्रूताम् | ब्रुवाताम् | ब्रुवताम् | |
ब्रुष्व | ब्रुवाथाम् | ब्रुध्वम् | |
ब्रुवै | ब्रुवावहै | ब्रवामहै |
लङ् लकार (परस्मैपद)
अब्रवीत् | अब्रुताम् | अब्रुवन् | |
अब्रवीः | अब्रूतम | अब्रूत | |
अब्रवम् | अब्रुव | अब्रुम |
(आत्मनेपद)
अब्रूत | अब्रुवाताम् | अब्रुवत | |
अब्रुथाः | अब्रुवाथाम् | अब्रुध्वम् | |
अब्रुवि | अब्रूवहि | अब्रूमहि |
विधिलिङ (परस्मैपद)
ब्रूयात् | ब्रूयाताम् | ||
ब्रूयाः | ब्रूयातम् | ब्रूयात | |
ब्रूयाम् | ब्रूयाव | ब्रूयाम |
(आत्मनेपद)
ब्रुवीत | ब्रुवीयाताम् | बूवीरन | |
ब्रुवीथाः | ब्रूवीयाथाम् | बूवीध्वम | |
ब्रुवीय | ब्रुवीवहि | ब्रुवीमहि |
‘दुह्’ धातु (उभयपदी) (दूहना, To milk)
लट् लकार (परस्मैपद)
दोग्धि | दुग्धः | दुहन्ति | |
घोक्षि | दुग्धः | दुग्ध | |
दोमि | दुह्वः | दुमः |
(आत्मनेपद)प्रथम पुरुष
दुग्धे | दुहाते | दुहते | |
धुक्षे | दुहाथे | दुग्धवे | |
दुवहे | दुमहे |
लोट् लकार (परस्मैपद)
दोग्धु | दुग्धाम | ||
दोग्धि | दुग्धम् | दुग्ध | |
दोहानि | दोहाव | दोहाम |
(आत्मनेपद)
दुग्धाम् | दुहाताम् | दुहताम् | |
धुक्ष्व | दुहाथाम् | दुग्ध्वम् | |
दोहै | दोहावहै | दोहामहै |
लङ् लकार (परस्मैपद)
अधोक् | अदुग्धाम् | अदुहन् | |
अधोक् | अदुग्धम् | अदुग्ध | |
अदोहम् | अदुव | अदुह्म |
लेख के बारे में-
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